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________________ लेश्या-कोश ३०३ प्रथम और तृतीय भंग से, सलेशी अचरम वानव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव नारकी की तरह प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। नाम, गोत्र, अन्तराय सम्बन्धी पद ज्ञानावरणीय कर्म की वक्तव्यता की तरह जानना चाहिए। अचरम विशेषण से अलेशी की पृच्छा नहीं करनी चाहिए। '७६ सलेशी जीव और कर्म का करना जीवे ( जीवा ) णं भंते ! पावं कम्मं किं करिंसु करेति करेस्सति (१), करिंसु करेति न करेस्सति (२), करिंसु न करेति करेस्सति (३), करिंसु न करेति न करेस्सति (४), ? गोयमा ! अत्थेगइए करिंसु करेति करेस्सति (१), अत्थेगइए करिंसु करेति न करेस्सति (२), अत्थेगइए करिंसु न करेति करेस्सति (३), अत्थेगइए करिंसु न करेति न करेस्सति (४), सलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं ? एवं एएणं अभिलावेणं बंधिसए वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा, तहेव नवदंडगसंगहिया एकारस उद्देस्सगा भाणियव्वा । ... -भग० श २७ । उ १ । सू १-२ । पृ० ६०३ पापकर्म का करना चार विकल्प से होता है-(१) किया है, करता है, करेगा, (२) किया है, करता है, न करेगा, (३) किया है, नहीं करता है, करेगा, (४), किया है, नहीं करता है और न करेगा । सलेशी जीव ने पापकर्म तया अष्टकर्म किया है इत्यादि उसी प्रकार कहने चाहिये जैसे बंधन शतक में ( देखो '७५) नवदण्डक सहित एकादश उद्देशक कहे गए हैं। '७७ सलेशी जीव और कर्म का समर्जन-समाचरण जीवा णं भंते ! पावं कम्म कहिं समज्जिणिंसु, कहिं समायरिंसु ? गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा (१), अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होजा (२), अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मणुस्सेसु य होजा (३), अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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