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________________ २८० लेश्या-कोश गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुव्वे जाईसरणे समुप्पणे, पुन्वजाइ सम्म समागच्छइ। - –णाया० श्रु १ अ १३ । सू ३५ अर्थात् नंदा पुष्करणी में स्थित उस मेढक ने बहुत व्यक्तियों से सुना कि इस नन्दा पुष्करणी को नन्दमणियार ने बनाया था। ईहा-अपोह-मार्गणा-गवेषणा करते हुए, तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने से, प्रशस्त, अध्यवसाय, विशुद्धमान लेश्या, शुभपरिणाम से उस मेढ़क को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ जिससे उसने अपने द्वारा कृत पूर्व भव-नंदमणियार के भव को देखा । १४-अंबड़ णरिव्राजक वीर्यलब्धि ( विशेष शक्ति का प्राप्ति ) वैक्रियलब्धि (अनेक रूप बनाने की शक्ति) और अवधिज्ञानलब्धि ( रूपी पदार्थों को आत्मा से जानने की शक्ति ) के प्राप्त होने पर मनुष्यों को विस्मित करने के लिए कंपिल्लपुर नगर में सौ घरों में आहार करता था, सौ घरों में निवास करता था । ये लब्धियाँ अंबड़परिव्राजक को स्वाभाविक भद्रता यावत् विनीतता से युक्त निरंतर बेले-वेले की तपस्या करते हुए भुजाएं ऊँची रखकर और मुख सूर्य की ओर आतापना भूमि में आतापना लेने वाले शुभ परिणामादि से प्राप्त हुई। कहा है___ अम्मडस्स f परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए छट्ठछोणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिझिय पगिझिय सूराभिमुहस्स आयावणमूमीए आयावेमाणस्स, सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं, अण्णया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस वीरियलद्धी वेउवियलद्धी ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा । ___-ओव० सू ११६ ___ अंबड़ परिव्राजक को शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय और विशद्धमान लेश्या के द्वारा किसी समय तदावरणीय कर्मों के क्षयोपशम होने पर ईहा, अपोह, मार्गणा तथा गवेषणा करते हुए वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि के साथ अवधिज्ञान लब्धि प्राप्त हुई। ... १५-तेतलिपुत्र को शुभ परिणाम आदि से जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणं जाईसरणे समुप्पन्ने । --णाया० श्रु.१ अ १४ । सु८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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