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________________ ( 41 ) संक्षिप्त-विपुल तेजो लेश्या के अधिकारी तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संखित्तविउलतेउलेस्से भवति, तं जहा-आयावणताए, खंतिखमाए, अपाणगेणं तवोकम्मेणं । -ठाण० स्था ३ । सू ३८६ तीन स्थानों से श्रमण निग्नन्थ संक्षिप्त की हुई विपुल तेजो लेश्या वाले होते हैं। १-आतापना लेने से, २-क्रोधविजयी होने के कारण समर्थ होते हुए भी क्षमा करने से ३-जल रहित तपस्या करने से। जैन दर्शन के अनुसार लेश्याओं के परमाणु हमें प्रभावित करते हैं। भरत के बाद उनके आठ उत्तराधिकारियों ने आदर्श महल में प्रशस्त लेश्या आदि से केवल्य ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद स्थिति बदल गयी। भावों की पवित्रता अथवा आभामंडल की पवित्रता भी व्यक्ति को बहुत प्रभावित करती है । परोक्ष ज्ञान में संशय, विपर्ययव अनध्यवसाय-ये तीनों होते हैं। प्रत्यक्ष ज्ञान में ये तीनों नहीं होते । धर्म सबसे बड़ा मंगल है। ___ जंबूद्वीप में सूर्य की क्रिया संभवतः अवभास-उद्योत, ताप-प्रकाश रूप होती है और यह क्रिया सूर्य की लेश्या के द्वारा ही जंबूद्वीप में होती है अलेशी जीव सिद्ध भी होते हैं व चतुर्दशवे गुणस्थान वाले भी। जन शासन के लिए श्रमण संघ शब्द का प्रयोग होता है। इसे तीर्थ भी कहा जाता है । जीव अजीव आदि पदार्थों का यथार्थ प्ररूपण करने वाला प्रवचन तीर्थ है। प्रवचन तीथ कर द्वारा प्रतीत होता है भगवान महावीर जाति और सम्प्रदाय से अतीत थे। लोक की व्याधि व दुभिक्ष आदि से पीड़ित देखकर उत्तम संयम के धारक जिस महर्षि के दया का भाव उत्पन्न हुआ है, उसके मूल शरीर को न छोड़कर जो धवल वर्णवाला बारह योजन आयत तथा सूच्यंगुल के संख्यातवें भाग मात्र मूल विस्तार से व नौ योजन प्रमाण अनविस्तार से सहित पुरुष दाहिने कन्धे से निकलकर दक्षिण की ओर प्रदक्षिणा पूर्वक उस व्याधि व दुर्भिक्ष को नष्ट कर देता है और वापस अपने स्थान में प्रविष्ट हो जाता है उसे शुभ तेज समुद्घात ( शीतल तेजो लेश्या ) कहते हैं।' १. वृहद् टीका गा १८ । २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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