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________________ लेश्या-कोश २५५ कृष्णलेशी, नीललेशी, यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्या -स्थान से संक्लिष्ट होतेहोते कृष्णलेश्या में परिणमन करता हुआ कृष्णलेश्या में परिणमन करके कृष्णलेशी देवों में उत्पन्न होता है । कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्या स्थान से संक्लिष्ट अथवा विशुद्ध होते-होते नीललेश्या में परिणमन करता हुआ नीललेश्या में परिणमन करके नीललेशी देवों में उत्पन्न होता है । कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्या स्थान से संक्लिष्ट अथवा विशुद्ध होते-होते कापोतलेश्या में परिणन करता हुआ कापोतलेश्या में परिणमन करके कापोतलेशी देवों में उत्पन्न होता है । इसी प्रकार तेजोलेश्या, पद्मलेश्या तथा शुक्ललेश्या के सम्बन्ध में जानना । लेकिन इतनी विशेषता है कि लेश्या स्थान से विशुद्ध होते-होते शुक्ललेश्या में परिणमन करता हुआ शुक्ललेश्या में परिणमन करके शुक्ललेशी देवों में उत्पन्न होता है । '६८ समय व संख्या की अपेक्षा सलेशी जीव की उत्पत्ति, मरण और अवस्थिति *६८१ नरक पृथिवियों में— गमक १ – इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएस एगसमएणं x x x केवइया काऊलेस्सा उववज्जंति x x x जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा काऊलेस्सा उववज्र्ज्जति । --- गमक २ – इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससय सहस्सेसु संखेज्ज वित्थडेसु नरएस एगसमएणं x x x केवइया काऊलेस्सा उबवट्टति xxx जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नेरइया उवबट्ट ति, एवं जाव सन्नी । असन्नी न वति । गमक ३ - इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्ज वित्थडेसु नरएस x x x केवइया काऊलेस्सा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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