SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ लेश्या-कोश .५७.१८.६ अप्कायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक-१-६ अप्कायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पुढविकाइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा० ? एवं परिमाणादीया अणुबंधपज्जवसाणा जच्चेव अप्पणो सहाणे वत्तव्वया सच्चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा । x x x जइ आउकाइएहिंतो उववज्जति० ? एवं आउक्काइयाणं वि। एवं जाव-चउरिंदिया उववाएयव्वा । नवरं सव्वत्थ अप्पणो लद्धी भाणियव्वा । x x x जहेव पुढविक्काइएस उववज्जमाणाणं लद्धी तहेव सव्वत्थ x x x ) उनमें प्रथम के तीन गमकों में चार लेश्या, मध्यम के तीन गमकों में तीन लेश्या तथा शेष के तीन गमकों में चार लेश्या होती हैं। ( देखो '५८ १० २) -भग० श २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३६-४० '५८ १८.१० अनिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों मेंगमक-१-६ अग्निकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर '५८.१८.६ ) उनमें नौ गमकों में ही तीन तीन लेश्या होती हैं । ( देखो .५८.१० ३) -भग० श २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३६-४० .५८ १८ ११ वायुकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों मेंगमक-१-६ वायुकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर ५८ १८ १ ) उनमें नव गमकों में ही तीन लेश्या होती हैं । ( देखो ५८ १०४ ) -भग० २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३६-४० ५८ १८.१२ वनस्पतिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy