SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८३ लेश्या-कोश .५८ १.२ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक-१ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पज्जत्तसंखेजवासाउयसन्निपं चिंदियतिरिक्खज्जोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभपुढविनेरइएसु उववजित्तए x x x तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पन्नत्ताओ । तं जहाकण्हलेस्सा, जाव-सुक्कलेस्सा ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्या होती है। -भग० श २४ । उ १ । सू ५५, ५६ । पृ० ६१६ गमक-२ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से जघन्यकालस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है पजत्तसंखेज्ज० जाव-जे भविए जहन्नकाल० x x x ते णं भंते ! जीवा एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं। --भग० श २४ । उ १ । सू ६१, ६२ । पृ. ८१६ गमक-३ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( सो चेव उक्कोसकालहिईएसु उववन्नो x x x अवसेसो परिमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमओ यम्बो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं। -भग० श २४ । उ १ । सू ६३ । पृ० ८१६ गमक-४ जधन्यस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारको में उत्पन्न होने योग्य जी जीव हैं (जहन्नकाल ट्ठिईय-पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभपुढवि० जाव-उववजित्तए xxx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy