SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश १८७ वानव्यंतर-ज्योतिष-वैमानिक देव भवनवासी देवों की तरह समलेश्यावाले नहीं होते हैं। '५७ लेश्या और जीव का उत्पत्ति-मरण .५७.१ लेश्या-परिणति तथा जीब का उत्पत्ति-मरण लेसाहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कम्सइ उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ लेस्साहिं सव्वाहिं, चरिमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे होइ जीवस्स ।। अंतमुहुत्तम्मि गए अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव । लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ।। -उत्त० अ ३४ । गा ५८-६० । पृ० १०४८ सभी लेश्याओं की प्रथम समय की परिणति में किसी भी जीव की परभव में उत्पत्ति नहीं होती। सभी लेश्याओं की अन्तिम समय की परिणति में किसी भी जीव की परभव में उत्पत्ति नहीं होती। लेश्या की परिणति के बाद अन्तमुहर्त बीतने पर और अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर जीव परलोक में जाता है। '५७.२ मरण काल में लेश्या-ग्रहण और उत्पत्ति के समय की लेश्या जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किं लेसेसु उववजइ ? गोयमा ! जल्लेसाई दवाई परिआइत्ता कालं करेइ, तल्लेसेसु उववज्जइ, तं जहा–कण्हलेसेसु वा नीललेसेसु वा काऊलेसेसु वा एवं जस्स जा लेस्सा सा तस्स भाणियव्वा । जाव-जीवे णं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववज्जित्तए पुच्छा ? गोयमा! जल्लेसाई दव्वाई परिआइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववज्जइ, तं जहा-तेऊलेसेसु । जीवे णं भंते ! जे भविए वेमाणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किं लेसेसु उववज्जइ ? गोयमा ! जल्लेसाई दवाइ परिआइत्ता कालं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy