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________________ लेश्या-कोश १४१ (ग) भवणवइवाणमंतरपुढविआउवणस्सइकाइयाणं च चत्तारि लेस्साओ। -ठाण० स्था १ । उ १ । सू २०० । पृ० ४६६ बनस्पतिकाय के जीवों में चार लेश्या होती है। (घ) असुरकुमाराणं तओ लेस्साओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा xxx एवं पुढ विकाइयाणं आउवणस्सइकाइयाणं वि । -ठाण० स्था ३ । उ १ । सू ५६, ६१ । पृ० ५४५ वनस्पतिकाय में तीन संक्लिष्ट लेश्या होती है। १५.१ सूक्ष्म वनस्पतिकाय में ( मुहुमवणस्सइकाइया) अवसेसं जहा पुढविकाइयाणं । -जीवा० प्रति १ । सू १८ । पृ० १०६ सूक्ष्म वनस्पतिकाय में तीन लेश्या होती है। १५.२ बादर वनस्पतिकाय में (बायरवणस्सइकाइया ) तहेव जहा बायरपुढ विकाइयाणं । -जीवा० प्रति १ । सू २१ । पृ० ११० बादर वनस्पतिकाय में चार लेश्या होती है। .१५.३ अपर्याप्त वादर वनस्पतिकाय में चार लेश्या होती है। पाठ नहीं मिला। १५.४ पर्याप्त बादर वनस्पतिकाय में तीन लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला। १५.५ प्रत्येक शरीर वादर वनस्पतिकाय में चार लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । १५.६ अपर्याप्त प्रत्येक ब्रादर वनस्पतिकाय में चार लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला। १५.७ पर्याप्त प्रत्येक बादर वजस्पतिकाय में तीन लेश्या होती है । पाठ नहीं निला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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