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________________ लेश्या-कोश लेश्या शाश्वत भाव है, (देखो विविध ) | आर्त और रौद्रध्यान को त्यागकर जो धर्म और शुक्ल ध्यान का चिन्तन करता है, जिसका चित्तशान्त है, जिसने आत्मा ( मन तथा इन्द्रिय ) को वश कर रखा है तथा जो समिति तथा गुप्तिवन्त है ; जो सराग अथवा वीतराग है, उपशान्त और जितेन्द्रिय है— उसमें शुक्ललेश्या के परिणाम होते हैं । १२८ ४८ भावलेश्या के भेद ४८१ लेश्या परिणाम के भेद लेस्सापरिणामे णं भंते! कइ विहे पन्नत्ते ? गोयमा ! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा - कण्हलेस्सापरिणामे, नीललेस्सापरिणामे, काऊलेस्सापरिणामे, तेऊलेस्सापरिणामे, पम्हलेस्सापरिणामे, सुक्कलेस्सापरिणामे ! - पण ० प १३ । सू २ । पृ० ४०६ लेश्या के छ: भेद हैं, यथा १ - कृष्णलेश्या परिणाम, २- नीललेश्या परिणाम, ३ - कापोतलेश्या परिणाम, ४ – तेजोलेश्या परिणाम, ५ - पद्मलेश्या परिणाम तथा ६ – शुक्ललेश्या परिणाम | - ४९ विभिन्न जीवों में लेश्या परिणाम ( नेरइया ) लेस्सापरिणामेणं कण्हलेस्सा वि, नीललेस्सा वि काऊलेस्सावि | ( असुरकुमारा ) कण्हलेस्सा वि जाव तेऊलेस्सा वि । x x x एवं जाव थणियकुमारा । ( पुढविकाइया) जहा नेरइयाणं, नवरं तेऊलेस्सा वि एवं आउवसइकाइया वि । तेउवा एवं चेव; नवरं लेस्सापरिणामेणं जहा नेरइया | as' दिया जहा नेरइया । एवं जाव चउरिंदिया | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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