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________________ लेश्या-कोश २२ द्रव्य लेश्या की स्थिति '२२.१ कृष्णलेश्या की स्थिति मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तऽहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा कण्हलेस्साए । -उत्त० अ ३४ । गा ३४ । पृ० ३१० कृष्णलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक मुहूर्त अधिक तैतीस सामरोपम की होती है। २२.२ नीललेश्या की स्थित मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दसउदही पलियमसंखमभागब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिइ, नायब्वा नीललेस्साए॥ --उत्त० अ ३४ । गा ३५ । पृ० ३१० नीललेश्या की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की होती है। '२२ -३ कापोतलेश्या की स्थिति मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काउलेसाए । -उत्त० अ ३४ । गा ३६ । पृ० १०४७ कापोतलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम की होती है। २२.४ तेजोलेश्या की स्थिति मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दोण्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेऊलेसाए । -उत्त० अ ३४ । गा ३७ । पृ० १०४७ तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त तथा उत्कृष्ट पल्लोपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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