SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश में बार-बार परिणत होती है, यथा-वैडूर्यमणि में जैसे रंग का सूता पिरोया जाय वह वैसे ही रंग में प्रतिभासित हो जाती है। '१६ २ नीललेश्या का अन्य लेश्याओं में परस्पर परिणमन (क) एवं एएणं अभिलावेणं नीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प x x x जाव भुज्जो २ परिणमइ। –पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२२१ । पृ० २६२ (ख) से नूणं भंते ! नीललेस्सा कण्हलेस्सं जाव सुक्कलेसं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा! एवं चेव ।। -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२२३ । पृ० २६२ नीललेश्या कापोतलेश्या के दव्यों का संयोग पाकर उस रूप, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श रूप में परिणत होती है । नीललेश्या कृष्ण, कापोत, तेजो, पद्म, तथा शुक्ललेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उनके रूप, वर्ण गंध, रस और स्पर्श रूप में परिणत होती है। १६.३ कापोतलेश्या का अन्य लेश्याओं का परस्पर परिणमन (क) एवं एएणं अभिलाबेणं xxx काऊलेस्सा तेउलेस्सं पप्प xxx जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ। --पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२२१ । पृ० २६२ (ख) काऊलेस्सा कण्हलेस्सं नीललेस्सं तेऊलेग्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेरसं पप्प x x x जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ ? हंता गोयमा ! तं चेव । -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२२४ । पृ० २६३ कापोतलेश्या तेजोलेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उनके रूप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रूप में परिणत होती है। ___कापोतलेश्या कृष्ण, नील, तेजो, पद्म और शुक्ललेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उनके रूप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रूप में परिणत होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy