SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश १८ द्रव्य लेश्या और गुरुलघुत्व __ कण्हलेसा णं भंते ! किं गुरुया, जाव अगुरुयलहुया ? गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया, गुरुयलहुया वि, अगुरुयलहुया वि। से केण?णं ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुञ्च ततियपएणं, भावलेस्सं पडुच्च चउत्थपएणं एवं जाव सुक्कलेस्सा। -भग० श १ । उ ६ । सू २८६-६० पृ० ४११ कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या द्रव्यलेश्या की अपेक्षा गुरलघु है तथा भावलेश्या की अपेक्षा अगुरुलघु है। १९ द्रव्य लेश्याओं की परस्पर परिणमन-गति से किं तं लेस्सागई ? २ जणं कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुजोभुजो परिणमइ, एवं नीललेसा काऊलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमइ, एवं काऊलेस्सा वि तेऊलेस्सं, तेऊलेस्सा वि पम्हलेस्सं, पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव परिणमइ, से तं लेस्सागई। –पण्ण० प १६ । उ ४ । सू १११६ । पृ० २४२ एक लेश्या दूसरी लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उस रूप, वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पशे रूप में परिणत होती है वह उसकी लेश्यागति कहलाती है। लेश्यागति विहायगति का ११वां भेद है। -पण्ण० प १६ । सू १४ । पृ० ४३२-३ .१६.१ कृष्णलेश्या का अन्य लेश्याओं में परस्पर परिणमन ... (क) से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ? से केणणं भंते ! एवं वुच्चइ–'कण्हलेस्सा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ' ? गोयमा ! से जहानामए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy