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________________ लेश्या-कोश यह तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यलेश्या छः प्रकार की है-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । भ्रमर, अंगार और कज्जल आदि से कृष्णलेश्या की ; नीम, कदली और दाव के पत्तों आदि से नीललेश्या की ; छार, खर, और कबूतर आदि से कापोतलेश्या की ; कुकुम, जावाकुसुम और कुसुभी कुसुम आदि से तेजोलेश्या की ; तडवडा और पद्मपुष्पादिकों से पद्मलेश्या की तथा हंस और बलाका आदि से शुक्ललेश्या की अनुभूति होती है। भावलेश्या दो प्रकार की है-आगमभावलेश्या और नोआगमभावलेश्या । आगम भावलेश्या सुगम है। कर्म-पुद्गलों के ग्रहण में कारणभूत जो मिथ्यात्व, असंयम और कषाय से अनुरंजित योगप्रवृत्ति होती है उसे नोआगम भावलेश्या कहते हैं अर्थात् मिथ्यात्व, असंयम और कषाय से उत्पन्न संस्कार ही नोआगम भावलेश्या है। ०.९.२ नय की अपेक्षा लेश्या पर विवेचन - एत्थ णेगमणय वत्तव्वएण णोआगमदव्व-भावलेस्साए पयदं। तत्थ ताव दव्वलेस्सावण्णणं कस्सामो-जीवेहि अपडिगहिदपोग्गलक्खंधाणं किण्ण-णी ल-काउ-तेउ पम्मसुक्कसण्णिदाओछलेस्साओहोंति । अणंतभागवड्ढि - असंखेज्जभागवड्ढि - संखेजभागवड्ढि-संखेजगुणवड्ढि-असंखेजगुणवड्ढि-अणंतगुणवडिढकमेण असंखेजलोगमेत्तवण्णभेदेण पोग्गलेसु ट्ठिदेसु किम छच्चेव लेस्साओ त्ति एत्थ णियमो कीरदे ? ण एस दोसो, पजवणयप्पणाए लेस्साओ असंखेजलोगमेत्ताओ; दव्वट्टियणप्पणाए पुण लेस्साओ छच्चेव होंति । x x x xxx । संपहि भावलेस्सा वुञ्चदे। तंजहा–मिच्छत्तासंजमकसाय-जोगणिदो जीवसंसकारो भावलेस्सा णाम । तत्थ जो तित्वो सा काउलेस्सा । जो तिव्वयरो सा णीललेस्सा । जो तिव्वतमो सा किण्णलेस्सा । जो मंदो सा तेउलेस्सा। जो मंदयरो सा पम्मलेस्सा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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