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________________ ७२ लेश्या-कोश प्रथम तीन लेश्याएं दुर्गति में ले जानेवाली हैं तथा पश्चात् की तीन लेश्याएँ सुगति में ले जानेवाली हैं। (५) विशुद्ध-अविशुद्ध एवं तओ अविसुद्धाओ, तओ विसुद्धाओ। -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२० । ( एवं व तओ बाद ) -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२४१ । पृ० २६७ प्रथम तीन लेश्याएं ( परिणाम की अपेक्षा ) अविशुद्ध हैं तथा पश्चात् की तीन लेश्याएं विशुद्ध हैं। (६) शुभ-अशुभ काऊ णीलं किण्हं परिणमदि किलेसव डिद अप्पा । एवं किलेसहाणीवडिढ्दो होदि असुहतियं ।। तेऊ पउमे सुक्के सुहाणमवरादिअंसगे अप्पा । सुद्धिस्स य वडिढ्दो हाणीदो अण्णदा होदि ।। -गोजी० गा ५०१-२ आत्मपरिणामों में संक्लेश की हानि-वृद्धि से प्रथम तीन लेश्याओं को अशुभ कहा गया है और आत्मपरिणामों में विशुद्धि की हानि-वृद्धि से अन्त की तीन लेश्याओं को शुभ कहा गया है। ०८ लेश्या पर विवेचन-गाथा आगमों में लेश्या पर विवेचन विभिन्न अपेक्षाओं से किया गया है। तीन आगमों में यथा-भगवई, पण्णवणा तथा उत्तरज्झयण में लेश्या पर विशेष विवेचन किया गया है। विवेचन के प्रारम्भ में किन-किन अपेक्षाओं से विवेचन किया गया है इसकी एक गाथा दी गई है। भगवई तथा पण्णवणा में एक समान गाथा है तथा उत्तरज्झयणं में भिन्न गाथा है। ... (क) परिणाम-वन-रस-गन्ध-सुद्ध-अपसत्थ-संक्लिट्ठुण्हा । गइ - परिणाम - पएसो-गाह-वग्गणा-ठाणमप्पबहु॥ -भग० श ४ । उ १० । गा १ --पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२१८ । पृ० २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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