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________________ लेश्या - कोश ६९ यामेव कृष्णादिवर्णरूपां नोकर्मणि सप्तविधां जीवद्रव्यलेश्यां मन्यन्ते X X X I प्रक्रम - उत्थान जीव दो प्रकार के होते हैं—भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक । और पतन की चेष्टा रूप इनके सात-सात भेद होते हैं । यहां पर प्रक्रम को ही लेश्या कहना चाहिए । आचार्य जयसिंहरि का कथन है कि कृष्णादि छः तथा संयोगजा को लेकर सात भेद लेश्या के समझने चाहिए तथा वे इनको शरीर की छाया रूप मानते हैं । एक लेश्या से तदुपरि या तदधः लेश्या में निरन्तर जाते-आते रहने को 'संयोगजा' कहा जा सकता है । अथवा दो लेश्याओं के संयोग-स्थल को 'संयोगजा' कहा जा सकता है । जीव के औदारिक, औदारिकमिश्रादि सात भेदों के आधार पर अन्य आचार्य लेश्या के सात भेद करते हैं और वे जीव के शरीर की छाया अर्थात् कृष्णादि वर्ण रूप नोकर्म जीवद्रव्यलेश्या को सात प्रकार का मानते हैं । यहाँ हमारी समझ में इन्द्रधनुष के सप्त वर्णों के आधार पर कृष्णादि वर्ण सात माने गये होंगे । औदारिकादि शरीरों से सप्तवर्णी आभा का निष्क्रमण सम्भवतः इन सात भेदों का आधार हो । ०७४ दस भेद अजीवन कम्मदव्वलेस्सा, सा दसविहा उ नायव्वा । चन्दाण य सूराण य, गहनक्खत्तताराणं ॥ ५३७॥ आभरणच्छायणा- दंसगाण, मणिकाकिणीणजा लेस्सा | अजीवदव्वलेसा, नायव्वा अजीव नोकर्मद्रव्यलेश्या के दस भेद होते हैं ; यथा - चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारों की लेश्या; आभरण, छाया, दर्पण, मणि और काकिणी की लेश्या । ये भेद ज्योति की विभिन्नता के आधार पर किये गये हैं । २०७५ दलगत भेद : (क) द्रव्य लेश्या के (१) दुर्गन्धवाली सुगन्धवाली दसविहा एसा ॥ ५३८ ॥ - उत्त० अ ३४ । निर्युक्तिगाथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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