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________________ लेश्या-कोश लेश्या के दो भेद होते हैं-द्रव्य और भाव । द्रव्यलेश्या में पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस, और आठ स्पर्श होते हैं, अतः द्रव्यलेश्या पौद्गलिक है और भावलेश्या अवर्णी, अगन्धी, अरसी और अस्पर्शी होती है, अतः वह जीव-परिणाम विशेष है। (२) वण्णोदयसंपादितसरीरवण्णो दु दव्वदो लेस्सा।। मोहुदयखओवसमोवसमखयजजीवफंदणं भावो । -गोजी० गा ५३५ वर्ण नामकर्म से निष्पन्न शरीर का वर्ण द्रव्यलेश्या है। मोहकर्म के उदय, क्षयोपशम, उपशम और क्षय जनित जीव का स्पन्दन रूप परिणाम भावलेश्या है। '०७२ छः भेद (१) कइ णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! छल्लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा, तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा। -सम० लेश्या विचार । पृ० ३७५ -सम० ६ । प ३२० ( उत्तर केवल ) -भग० श १ । उ २३ सू ६८ -भग० श १६ । उ २ 1 सू १ -भग० श २५ । उ १ । सू १ -पण्ण० प १७ । उ २ । सू ११५६ । पृ० २७६ (२) कइ णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छलेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। -भग० श १६ । उ १ । सू१ -ठाण० स्था ६ । सू ५०४ -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२१६ । पृ० २६२ --पण्ण० प १७ । उ ५ । सू १२५० । पृ० ३०० (३) कइ णं भंते ! लेस्सा पन्नत्ता ? गोयमा! छ लेस्सा पन्नत्ता, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। -पण्ण० प १७ । उ ६ । सू १२५६ । पृ० ३०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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