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________________ लेश्या-कोश है, किन्तु योगपरिणाम लेश्या है और तीनों प्रकार के योग ( काययोग, वचनयोग, मनोयोग ) कर्मोदयजन्य हैं, अतः लेश्याओं को उभयजन्य ( योग और कर्मोदयजन्य ) स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अन्यों की मान्यता है-जिस प्रकार आठ कर्मों के उदय से संसारस्थत्व और असिद्धत्व होता है उसी प्रकार आठों कर्मों के उदय से लेश्यावत्व भी स्वीकार करना चाहिए । ०६.१० नेमिचन्द्राचर्य : लिंपइ अप्पीकीरइ एदीए णियअपुण्णपुण्णं च । जीवोत्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा ॥ जोगपउत्ती लेस्सा कसाय उदयानुरंजिया होइ । तत्तो दोण्णं कज्जं बंधचउक्कं समुदि॥ ---गोजी० गा ४८८-८६ जिसके द्वारा जीव अपने को पुण्य और पाप से लिप्त करे, अर्थात् पुण्य और पाप के अधीन करे उसको लेश्या कहते हैं। अथवा--कषायोदय से अनुरक्त योगप्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। इसलिए दोनों-योगप्रवृत्ति और कषाय का बन्धचतुष्क रूप कार्य परमागम में कहा गया है । ०६११ वीरसेनाचार्य : ___ (१) लिम्पतीति लेश्या। न भूमिलेपिकयाऽतिव्याप्तिदोषः कर्मभिरात्मानमित्यध्याहारापेक्षित्वात् । अथवात्मप्रवृत्तिसंश्लेषकरी लेश्या। नात्रातिप्रसङ्गदोषः प्रवृत्तिशब्दस्य कर्मपर्यायत्वात् । अथवा कषायानुरञ्जिता कायवाङ्मनोयोगप्रवृत्तिलेश्या। ततो न केवलः कषायो लेश्या, नापि योगः, अपि तु कषायानुविद्धा योगप्रवृत्तिर्लेश्येति सिद्धम् । ततो न वीतरागाणां योगो लेश्येति न प्रत्यवस्थेयं तन्त्रत्वाद्योगस्य, न कषायस्तन्वं विशेषणत्वतस्तस्य प्राधान्याभावात् । -षट ० खं० १ । सू ४ । पु १ । पृ० १४६-५० । टीका ___ जो लिम्पन करती है वह लेश्या है। इस लक्षण में भूमिले पिका पदार्थों का समाविष्ट होने से अतिव्याप्ति दोष होने की संभावना हो जाती है, लेकिन उक्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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