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________________ लेश्या-कोश कषायोदय से रंजित योगप्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। लेश्या दो प्रकार की होती है-द्रव्यलेश्या और भावलेश्या। द्रव्यलेश्या पुद्गलविपाकी कर्मोदय से निष्पन्न होती है। भावलेश्या आत्मपरिणाम है, अतः उस आत्मपरिणाम की अशुद्धि के प्रकर्ष और अप्रकर्ष की अपेक्षा से कृष्णादि शब्दों का उपयोग किया जाता है। कषाय-बन्ध के प्रकर्ष-अप्रकर्ष से युक्त योगप्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं । चाना-द. ०६.६ विद्यानन्दि : कषायोदयतो योगप्रवृत्तिरुपदर्शिता । लेश्या जीवस्य कृष्णादिः षड्भेदा भावतोनधैः ।। -श्लो० अ २ । सू ६ । श्लो ११ । ता जीव की भावलेश्या कषायोदय सह अवस्थित योगप्रवृत्ति है—ऐसा निष्पाप आचार्यों ने कहा है और वह कृष्णादि भेद से छः प्रकार की होती है। '०६ ७ सिद्धसेन गणि: लिश्यन्ते इति लेश्याः, मनोयोगावष्टम्भजनितपरिणामः, आत्मना सह लिश्यते एकीभवतीत्यर्थः। x x x द्विविधा लेश्या द्रव्यभावभेदतः द्रव्यलेश्याः कृष्णादिवर्णमात्रम् ।। भावलेश्यास्तु कृष्णादि वर्णद्रव्यावष्टम्भजनिता परिणामकर्मबन्धनस्थितेर्विधातारः, श्लेषद्रव्यवद् वर्णकस्य चित्राद्यर्पितस्येति, तत्राविशुद्धोत्पन्नमेव कृष्णवर्णस्तत्सम्बद्धद्रव्यावष्टम्भादविशुद्धपरिणाम उपजायमानः कृष्णलेश्येति व्यपदिश्यते । आगमश्चायं• 'जल्लेसाई दव्वाह आदिअंति तल्लेस्से परिणामे भवति .. (प्रज्ञा० लेश्यापदे)। -सिद्ध ० अ २ । सू ६ । टीका * यह पद प्रज्ञापना लेश्यापद में नहीं मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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