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________________ लेश्या-कोश २ और औदारिक आदि शरीर के व्यापार से गृहीत मनोवर्गणा के द्रव्यसमह की सहायता से होने वाला जीवव्यापार मनोयोग है ३ । इसलिए जिस प्रकार कायादि करण से युक्त आत्मा की वीर्यपरिणति का योग कहा जाता है, उसी प्रकार लेश्या भी आत्मा की वीर्यपरिणति रूप है। अन्य आचार्यों का स्पष्ट कथन है कि कर्मों का निष्यन्द--रस रूप से झरण ही लेश्या है। यह लेश्या द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार की है। उसमें द्रव्यलेश्या तो कृष्णादि द्रव्य ही है और भावलेश्या कृष्णादि लेश्याद्रव्यजनित जीव-परिणाम है। ०६२ मलयगिरि : (क) इह योगे सति लेश्या भवति, योगाभावे च न भवति, ततो योगेन सहान्वयव्य तिरेकदर्शनात योगनिमित्ता लेश्येति निश्चीयते, सर्वत्रापि तन्निमित्तत्वनिश्चयस्यान्वयव्य तिरेकदर्शनमूलत्वात, योगनिमित्ततायामपि विकल्पद्वयमवतरति किं योगान्तर्गतद्रव्यरूपा योगनिमित्तकर्मद्रव्यरूपा वा ? तत्र न तावद्योगनिमित्तकमद्रव्य रूपा, विकल्पद्वयानतिक्रमात, तथाहियोगनिमित्तकमद्रव्य रूपा सती घातिकर्मद्रव्यरूपा अघातिकर्मद्रव्यरूपा वा ? न तावद् घातिकमद्रव्यरूपा, तेषामभावेऽपि सयोगिकेवलिनि लेश्यायाः सदभावात्, नापि अघाति कर्म (द्रव्य ) रूपा, तत्सद्भावेऽपि अयोगिकेवलिनि लेश्याया अभावात्, ततः पारिशेष्यात् योगान्तर्गतद्रव्य रूपा प्रत्येया। तानि च योगान्तर्गतानि द्रव्याणि यावत्कषायास्तावत्तेषामप्युदयोपबृहकाणि भवन्ति, दृष्टं च योगान्तर्गतानां द्रव्याणां कषायोदयोपबृहणसामर्थ्यम् । यथा पित्तद्रव्यस्य-तथाहि पित्तप्रकोपविशेषादुपलक्ष्यते महान् प्रवर्द्धमानः कोपः, अन्यचबाह्यान्यपि द्रव्याणि कर्मणामुदयक्षयोपशमादिहेतव उपलभ्यन्ते, यथा ब्राह्म यौषधिनिावरणक्षयोपशमस्य, सुरापानं ज्ञानावरणोदयस्य, कथमन्यथा युक्तायुक्तविवेकविकलतोपजायते, दधिभोजनं निद्रारूपदर्शनावरणोदयस्य, तम्कि योगद्रव्याणि न भवन्ति ? तेन यः स्थितिपाकविशेषो लेश्यावशादुपगीयते शास्त्रान्तरे स सम्यगुपपन्नः, यतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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