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________________ ४० लेश्या-कोश मूल-देखो पाठ 'सुहलेसा' का । वह ज्योति जो शीतलता प्रदान करती है उसको शीतलेश्या कहते हैं । टीकाकार ने इसका कोई अर्थ नहीं बतलाया है। '०४.८२ सुजलेसं ( सूर्यलेश्य ) --सम० सम है । सू १६-१७ मूल-बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं x x x जे देवा x x x सुज्ज x x x सुजलेसं x x x सुज्जुत्तरवडेंसगं x x x विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं नवसागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। टीका-x x x सूर्यादीन्यपि द्वादशैव x x x विमाननामानि । सूर्यलेश्य-ब्रह्मलोक कल्प के एक विमान विशेष का नाम । ब्रह्मलोक कल्प में कई देवता सूर्य आदि १२ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन १२ विमानों में सूर्यलेश्य नाम का भी एक विमान है। ०४.८३ सुविसुद्धलेसे ( सुविशुद्धलेश्य ) -सूय० श्रु १ । अ ४ । उ २ । गा २१ मूल-सुविसुद्धलेसे मेहावी, परकिरिअं च वजए नाणी । मणसा वयसा कायेणं, सव्वफाससहे अणगारे ।। टीका-सुष्टु-विशेषेण शुद्धा-स्त्रीसम्पर्कपरिहाररूपतया निष्कलङ्का लेश्या-अन्तःकरणवृत्तिर्यस्य स । सुविशुद्धलेश्य-पूर्ण ब्रह्मचर्य के पालन से जिसकी लेश्या-अन्तःकरण वृत्ति निष्कलंक होकर परम विशुद्धि को प्राप्त हो गई हो। सुविशुद्धलेश्य अनगार का एक विशेषण है। ०४.८४ सुसमाहितलेसे ( सुसमाहितलेश्य ) -आया० श्रु १ । अ ८ । उ ५ । सू ८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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