SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश १३ टीका- चरमलेश्यान्तर्गताः - चरमलेश्याविशेषसंस्पर्शिनः पुद्गलास्तेऽपि सूर्यलेश्यां प्रतिघ्नन्ति तैरपि चरमलेश्यासंस्पर्शितया चरमलेश्यायाः प्रतिहन्यमानत्वात् । " चरमलेश्यातर्गत — एक विशेष प्रकार के पुद्गल । ये पुद्गल चरमलेश्या ( ज्योतिविशेष ) के अन्तः प्रविष्ट - संस्पर्शित होकर रहते हैं । ये पुद्गल सूर्य की लेश्या -- किरण को प्रतिहत करने में समर्थ होते हैं । ०४-१५ चंदलेसं ( चन्द्रलेश्य ) - सम० सम ३ । सू २०-२१ मूल -- सण कुमार - माहिंदेस कप्पे अत्थेोगइयाणं देवाणं x x x जे देवा x x x चंदं x x x चंदलेस x x x चंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उबवण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिष्णि सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता | चन्द्रलेश्य -- सनत्कुमार- माहेन्द्र कल्प के एक विमान विशेष का नाम सनत्कुमार माहेन्द्र कल्प में कई देवता चन्द्र आदि ११ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन ११ विमानों में चन्द्रलेश्य ग्राम का भी एक विमान है । ०४ १६ चंदलेसादी ( चन्द्रलेश्या ) -सूर० प्रा १६ । सू ८७ मूल - Xxxता चंदलेसादी य दोसिणादी य दोसिणाई य चंदलेसादी य के अटूट्ठे किंलक्खणे ? ता एगट्ठे एगलक्खणे । टीका- 'चंदलेसाइ' इत्यादि x x x चन्द्रलेश्या इति ज्योत्स्ना इत्यनयोः पदयोरानुपूर्व्या अनानुपूर्व्या वा व्यवस्थितयोरेक एवअभिन्न एवार्थः, य एव एकस्य पदस्य वाच्योऽर्थः स एव द्वितीयस्यापि पदस्येति भावः । चन्द्रलेश्या- - चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को चन्द्रलेश्या कहते हैं या चन्द्रमा की लेश्या को चन्द्रज्योत्स्ना कहते हैं । चन्द्रलेश्या और चन्द्रज्योत्स्ना दोनों शब्द एकार्थवाची हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy