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________________ ( 123 ) अस्तु जो वृत्तियां अशुभ है, अप्रशस्त है, वे भीतर ही भीतर विकृति को जन्म देती है और मनुष्य को गल्तियों के चौराहे पर लाकर खड़ा कर देती है। अतः अप्रशस्त लेश्याओं के रहस्य को अच्छी तरह जाने । प्रशस्त लेश्या का सुफल है । ___ कल्याण मन्दिर स्तोत्र के बनाने वाले आचार्य का समय इतिहासकारों ने वि० सं० ५०० के करीब माना है । ___ इस स्तोत्र के रचयिता श्री सिद्धसेन दिवाकर उपनाम कुमुदचंद्राचार्य थे। एकदा वृद्धवादीजी से गोवालियों के सम्मुख शास्त्रार्थ से पराजित होने पर इन्होंने वृद्धवादीजी से दीक्षा ली। अपनी कवित्व शक्ति की योग्यता से ये उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के यहाँ राज गुरु पद से विभुषित किये गये । राजा विक्रमादित्य को जैन धर्म में प्रविष्ट कराने के लिए राजा के साथ मन्दिर में जाकर 'कल्याण मन्दिर' स्तोत्र की ४८ गाथाए रचना कर के शिवपिंडि में से पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा प्रगट की। इस महिमा को देखकर राजा पूर्ण रूपेण जैन धर्म का अनुयायी हो गया। इसकी ४ गाथायें भंडार कर दी गई है जो कि उपलब्ध नहीं होती और जो उपलब्ध होती है वे नूतन है। जैसे मनुष्य के शरीर में सिर और वृक्ष के उसकी जड़ मुख्य है वैसे ही समस्त साधु धर्मों का मूलध्यान है। प्रशस्त लेश्याओं से ध्यान को सम्यग् प्रकार साधा जा सकता है। ___ अस्तु नारकी और देव स्थित द्रव्य लेशी, मनुष्य तथा तिर्यंच अनवस्थित लेश्या वाले होते हैं। भाव परावर्त की अपेक्षा देव नारकी में छः लेश्या का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। यहाँ देव-नारकी के उस प्रकार के भव स्वभाव के कारण लेश्या के परिणाम उत्पत्ति के समय से लेकर भव के क्षयपर्यन्त निरन्तर रहते हैं। गोशाला नी अणुकम्पाकरी, भगवन्त शीतल लेश्या म्हेलीतामकै । भगवती पनरमा शतक में टीका में कहयो सराग प्रणामकै ॥३१॥ -३०६ बोल की हुंडी, ढाल ३ अर्थात् भगवान महावीर ने छद्मस्थावास्था में गोशाला को बचाने के लिए शीतल तेजो लेश्या का प्रयोग किया-अनुकम्पा के लिए। उस समय भगवान सरागी थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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