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________________ ( 115 ) अनेक वचन अपेक्षा की दृष्टि से कहे गये हैं। उन्हें निर्मल न्याय से हृदय में धारण करो। उन्हें देखकर श्रम में मत फसो। नय वचन निदोष व उदार होते हैं। औपपातिक सूत्र ( १८८ ) में कहा गया है साधिक आठ वर्ष की आयुवाला सिद्ध हो जाता है। नौवां वर्ष शुरु हो गया, इस दृष्टि से नौ वर्ष कहना भी नयवचनानुसार निर्दोष है। चुकि साधिक आठ वर्ष आयु कहा गया, उसमें गर्भगत नव मास मिलाने पर नौ वर्ष हो जाते हैं। उस अवस्था में दीक्षा देने पर कोई दोष दिखाई नहीं देता। इस निर्मल न्याय को तुम देखो-भगवती के टीकाकार ने संवृत्त अनगार जो यथार्थ स्वप्न देखता है, उसे विशिष्ट चरणधर कहा गया है। आवश्यक सूत्र में कहा है कि निद्रावस्था में अयथार्थ स्वन देखने पर मुनि को प्रायश्चित लेना पड़ता है। अत्यन्त विशुद्ध परिणाम की अपेक्षा कषाय कुशील को अप्रतिसेवी कहा है ।२ ___ कषाय कुशील निम्रन्थ में छः लेश्याए, पांच शरीर और छः समुद्घात बतलाये गये हैं। प्रश्न व्याकरण सूत्र में सत्य व दत्तको संवर कहा गया है। जिस कर्म के उदय से व्यक्ति हिंसा, असत्यादि असत् आचरण करता है वह पाप है, अथवा जो कर्म पुद्गल आकर चिपकते हैं बह पाप है। पाप कर्म के बंधन में कृष्णादि शुभ लेश्या भी निमित्त बनती है। प्रतिक्रमण का अर्थ-प्रति का अर्थ है वापस व क्रमण का अर्थ है चलना । वापिस चलना, लौट जाना । उपसर्ग-भगवान महावीर के समवसरण में गोशालक ने तेजो लेश्या से सर्वानुभूति एवं सुनक्षत्र मुनि को जला दिया। उसी तेजो लेश्या का भगवान पर प्रयोग किया। यह प्रथम आश्चर्य है। भगवान महावीर के परिजनों का आयुष्य इस प्रकार है। १-पूर्व पिता-ऋषभदत्त ब्राह्मणः १०० वर्ष २-पूर्व माता-देवानंदा ब्राह्मणी १०५ ३-पिता सिद्धार्थ ४-माता त्रिशला ५-चाचा सुपाश्र्व १. झीणी चरचा ढाल १३ । गा ७५, ७६ २. भगवती श २५ । उ ७ ८७ वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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