SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 100 ) सब लेश्याओं में प्रत्येक की अनंतवर्गणा कही गयी है तथा सबके अनंत प्रदेश कहे गये हैं । सब लेश्या असंख्यात क्षेत्र- प्रदेश में अवगाहन करती है तथा लेश्या के अध्यवसाय के असंख्यात स्थान कहे गये हैं । यह स्थान क्षेत्र उपमा से असंख्यात लोकTara के असंख्य प्रदेश जितने हैं । तथा काल तुलना से असंख्यकाल चक्र में जितने समय होते हैं उतने कहे गये हैं । जिस लेश्या के योग्य कर्म द्रव्य जीव ग्रहण करता है उसके निमित्त से उसी लेश्या रूप उसके परिणाम हो जाते हैं । जब योग होता है तब लेश्या होती है, योग के अभाव में लेश्या नहीं होती है । अतः लेश्या के साथ योग का अन्वय और व्यतिरेक सम्बंध होने के कारण लेश्या का कारण योग है, यह निश्चित हो जाता है । लेश्या योग का निमित्त भूत कर्म द्रव्य रूप नहीं है । क्योंकि यदि है तो या घातकर्म द्रव्य रूप है या अघाती कर्म द्रव्य रूप है । लेकिन घातीघाती कर्म द्रव्य रूप तो नहीं है क्योंकि सयोगी केवली के घाती कर्म द्रव्य के अभाव में भी लेश्या होती है । और अघाती कर्म द्रव्य रूप भी नहीं है क्योंकि अघाती कर्म के होते हुए अयोगी केवली के लेश्या नहीं होती है । योग के अन्तर्गत द्रव्य जहाँ तक कषाय है, वहाँ तक कषाय के उदय को बढ़ाते हैं | योगान्तर्गत द्रव्यों में कषाय के उदय को बढ़ाने की सामर्थ्यता है, जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि होती है । ( योग के अन्तर्गत द्रव्य रूप ) लेश्या से स्थितिपाक विशेष होता है - ऐसा शास्त्र में कहा जाता है— सो वह पूरा उतरता है । क्योंकि स्थितिपाक विशेष अर्थात् अनुभाग उसका निमित्त कषायोदय के अन्तर्गत कृष्णादि लेश्या के परिणाम है । और वास्तव में उसके अन्तर्गत होने से कषायोदय रूप ही हैं । केवल योगान्तर्गत द्रव्यों के सहकारिता के कारण तथा उन द्रव्यों की विचित्रता के कारण, कृष्णादि भेदों में भिन्नता आती है तथा प्रत्येक लेश्या के तारतम्य भेद से विचित्र परिणाम होते हैं । कषायोदय के अन्तर्गत कृष्णादि लेश्या के परिणाम भी कषाय रूप है । लेकिन लेश्या स्थिति बंध का कारण नहीं है पर कषाय है । लेश्या तो कषायोदय के अन्तर्गत अनुभाग का कारण होता है । स्थितिपाक विशेष लेश्या विशेष से होता है । "कर्म निःष्यन्दो लेश्या" कोई कहते हैं कि लेश्या कर्म निःष्यन्द रूप है । लेकिन जहाँ तक कषाय का उदय होता है वहाँ तक कर्म का निःष्यन्द होता है | अतः लेश्मा कर्म के निःष्यन्द रूप है तो कर्म की स्थिति का भी कारण है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy