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________________ रायसेणीयं में कहा है एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स सकम्मस्स सरागस्स समोहस्स सवेयस्स ससस्स ससरीरस्स रूवं पाससि । ( 98 ) -राय० सू ७७१ वायु काय सरूपी है, सकर्म, सराग, समोह-सवेद-सलेशी, सरीरी होते हुए भी छद्मस्थ नहीं देख सकता है । यहाँ विशिष्ट अवधिज्ञान रहित को छद्मस्थ कहा गया है । छद्मस्थ निम्नलिखित दस स्थान को नहीं जानता है । १ - धर्मास्तिकाय, २ - अधर्मास्तिकाय, ३ - आकाशास्तिकाय, ४ – शरीर रहित जीव, ५ – परमाणु पुद्गल, ६-- शब्द, ७– गंध, ८-- वायु, ६--यह जिन होगा या नहीं तथा १० - - यह सर्व दुःखो का अन्त करेना या नहीं । इन सब को केवली जानते हैं, देखते हैं । देवताओं का आभामंडल मृत्यु के छः मास पूर्व क्षीण होने लग जाता है । उन्हें सूचना मिल जाती है कि छः मास बाद उन्हें देव जन्म को छोड़ कर अन्यत्र जाना होगा। दूसरा जन्म लेना होगा । देव वर्तमान आयुष्य के छः मास शेष रहने पर परभव के आयुष्य का बंधन करते हैं । इसी प्रकार नारकी व तियंच पंचेन्द्रिय व मनुष्य युगलिये आयुष्य का बंधन करते हैं । राजगृह में पुणिया श्रावक रहता था । भगवान महावीर का प्रमुख श्रावक था । उसकी पत्नी का नाम समता था । सामयिक की आराधना अद्भूत थी । भगवान महावीर ने उसके सामायिक की प्रशंसा की । शुभलेश्या आदि में कालकर दोनों वैमानिक देवों में उत्पन्न हुए । आचार्य पद्मआगरजी ने अपने विचार इस प्रकार दिये हैं "श्रीमान् विद्वान मोहनलालजी बांठिया के द्वारा सम्पादित जैन धर्म व कर्म - विज्ञान से सम्बन्धित साहित्य को पढ़ने का अवसर मिला है । उनके द्वारा किया गया आगमिक संकलन खूब उपयोगी एवं प्रशंसनीय है । ऐसे साहित्य का प्रकाशन भगवान महावीर के तत्व प्रचार के लिए खूब उपयोगी सिद्ध होगा । " गांधी नगर, गुजरात ता० १-८-२००१ १. राय० सू ७७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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