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________________ लेश्या-कोश .२ अजीव नोकर्म द्रव्यलेश्या के दस भेद अजीव कम्म नो दव्वलेसा, सा दसविहा उ नायव्वा । चन्दाण य सूराण य, गहगण नक्खत्त ताराणं ।। आभरणच्छायाणा-दंसगाण, मणि कागिणीण जा लेसा। अजीव दव्व-लेसा, नायव्वा दसविहा एसा ।। -उत्त० अ ३४ । नि० गा ५३७,३८ अजीव नोकर्म द्रव्यलेश्या के दस भेद, यथा-चन्द्रमा की लेश्या, सूर्य की, ग्रह की, नक्षत्र की, तारागण की लेश्या ; आभरण की लेश्या, छाया की लेश्या, दर्पण की लेश्या, मणि की तथा कांकणी की लेश्या। यहाँ लेश्या शब्द से उपरोक्त चन्द्रमादि से निसर्गत ज्योति विशेषादि को उपलक्ष किया है, ऐसा मालूम पड़ता है। ३.२ सरूपी सकर्मलेश्या का अवभास, उद्द्योत, तप्त एवं प्रभास करना अस्थि णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति, उज्जोवेन्ति, तवेन्ति, पभासेंति ? हंता अत्थि ? ___ कयरे णं भंते ! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गल ओभासेंति, जाव पभासेंति ? गोयमा ! जाओ इमाओ चन्दिम-सूरियाणं देवाणं विमाणेहितो लेस्साओ बहिया अभिनिस्सडाओ ताओ ओभासंति (जाव) पभासेंति, एवं एएणं गोयमा! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति । -भग० अ० १४ । उ ६ । प्र २-३ । पृ० ७०६ सरूपी सकर्मलेश्या के पुद्गल अवभास, उद्योत, तप्त तथा प्रभास करते हैं यथा-चन्द्र तथा सूर्यदेवों के विमानों से बाहर निकली लेश्या अवभासित, उद्योतित, तप्त, प्रभासित होती है। टीकाकार ने कहा कि चन्द्रादि विमान से निकले हुए प्रकाश के पुद्गलों को उपचार से सकर्मलेश्या कहा गया है। क्योंकि उनके विमान के पुद्गल सचित्त पृथ्वीकायिक है और वे पृथ्वीकायिक जीव सकर्मलेशी है अतः उनसे निकले पुद्गलों को उपचार से सकर्मलेश्या पुद्गल कहा गया है। अन्यथा वे अजीव नोकर्म द्रव्यलेश्या के पुद्गल है । ३.३ सूर्य की लेश्या का शुभत्व किमिदं भंते! सूरिए (अचिरुग्गयं बालसूरियं जासुमणा कुसुमपुंजप्पकासं लोहित्तगं ) ; किमिदं भंते ! सूरियस्स अट्ठ ? गोयमा ! सुभे सूरिए, सुभे सुरियस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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