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________________ लेश्या - कोश (ग) तओ दुग्गगामियाओ ( कण्ह, नील, काऊ ) तओ सुग्गइगामियाओ ( तेऊ, पम्ह, सुक्कलेस्साओ ) । पण ० प १७ । उ४ | सू ४७ | पृ० ४४६ कृष्ण, नील तथा कापोतलेश्याएं दुर्गति में जाने की हेतु हैं तथा तेजो, पद्म तथा शुक्ललेश्याएं सुगति में जाने की हेतु हैं । ४५ यह पाठ द्रव्य और भाव दोनों में लागू हो सकते हैं। स्थानांग तथा प्रज्ञापना में द्रव्य तथा भाव दोनों के गुणों का मिश्रित विवेचन है । प्रज्ञापना के टीकाकार मलयगिरि का कथन है कि लेश्या अध्यवसायों की हेतु है और संक्लिष्ट असंकलिष्ट अध्यवसायों से जीव दुर्गति सुगति को प्राप्त होता है । यह विवेचनीय विषय है । '२७ लेश्या के छ भेद और पंच ( पुद्गल ) वर्ण एयाओ णं भन्ते ! छल्लेस्साओ कश्सु वन्नेसु साहिज्जंति ? गोयमा ! पंचसु वसु साहिज्जंति, तंजहा - कण्हलेस्सा कालएणं वन्नेणं साहिज्जइ, नीललेस्सा नीलवन्नेणं साहिज्जइ, काऊलेस्सा काललोहिएणं वन्नेणं साहिज्जइ, तेऊलेस्सा लोहिएणं वनेणं साहिज्जर, पहलेस्सा हालिएणं वन्नेणं साहिज्जर, सुक्कलेस्सा सुकिल्लएणं वनेणं साहिज्जइ । - पण्ण० प १७ । उ४ | सू ४० । पृ० ४४७ कृष्णलेश्या काले वर्ण की है, नीललेश्या नीले वर्ण की है कापोतलेश्या कालालोहित वर्ण की है, तेजोलेश्या लोहित वर्ण की है, पद्मलेश्या पीले वर्ण की है, शुक्ललेश्या श्वेत वर्ण की है। - २८ द्रव्यलेश्या और जीव के उत्पत्ति-मरण के नियम २८.१ द्रव्यलेश्या का ग्रहण और जीव के उत्पत्ति-मरण के नियम | (क) से किं तं लेसाणुवायगइ ? २ जल्लेसाई दव्वाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववज्जइ, तंजहा - कण्हलेसेसु वा जाव सुक्कलेसेसु वा, से तं लेसाणुवायगइ | - पण्ण० प १६ । उ १ । सू १५ | पृ० ४३३ (ख) जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते! किं लेसेसु उववज्जइ ? गोयमा ! जल्लेसाई' दव्वाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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