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________________ लेश्या-कोश यणस्स बालतवस्सिसस्स सीओसिणा (सा उसिणा ) तेउलेस्सा पडिहया, तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सीयलियाए तेउलेस्साए सीओसिणं तेउलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता सीओसिणं तेउलेस्सं पडिसाहरइ । -भग० श १५ । पै०६ । पृ० ७१४ तब, हे गौतम ! मंखलिपुत्र गोशालक पर अनुकम्पा लाकर वेश्यायन बालतपस्वी की ( निक्षिप्त ) तेजोलेश्या का प्रतिसंहार करने के लिये मैंने शीत तेजोलेश्या बाहर निकाली और मेरी शीत तेजोलेश्या ने वेश्यायन बालतपस्वी की उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात किया। तत्पश्चात् वेश्यायन बालतपस्वी ने मेरी शीत तेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ समझ कर तथा मंखलीपुत्र गोशालक के शरीर को थोड़ी या अधिक किसी प्रकार की पीड़ा या उसके अवयव का छविच्छेद न हुआ जानकर अपनी उष्ण तेजोलेश्या को वापस खींच लिया। यहाँ यह बात नोट करने की है कि उष्ण तेजोलेश्या को फेंककर वापस खींचा भी जा सकता है। २५.३ तपोकर्म से तेजोलेश्या प्राप्ति का उपाय । कहन्नं भंते ! संखित्तविउल तेउलेस्से भवइ ? तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-जेणं गोसाला! एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं छट्टछ?णं अणिक्खित्तणं तवोकम्मेणं उड्डे बाहाओ पगिज्झिय २ जाव विहरइ । से णं अन्तो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेउलेस्से भवइ, तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एयमटुं सम्मं विणएणं पडिसुणेइ । -भग० श १५ । पै० ६ । पृ० ७१५ संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या किस प्रकार प्राप्त होती है ? नखसहित जली हुई उड़द की दाल के बाकले मुट्ठी भर तथा एक चल्लू भर पानी पीकर जो निरन्तर छछह भक्त तप उर्ध्व हाथ रखकर करता है, विहरता है उसको छ मास के अन्त में संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या की प्राप्त होती है। संक्षिप्तविपुल का भाव टीकाकार अभयदेवसूरि ने इस प्रकार वर्णन किया है। संक्षिप्त-अप्रयोग काल में संक्षिप्त । विपुल-प्रयोगकाल में विस्तीर्ण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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