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________________ ४० • २३ द्रव्यलेश्या और भाव लेश्या - कोश आगमों में द्रव्यलेश्या के भाव -सम्बन्धी कोई पाठ नहीं है । होने के कारण इसका 'पारिणामिक' भाव है। I - २४ लेश्या और अन्तरकाल । (क) कण्हले सस्स णं भंते! अन्तरं कालओ केवचिरं होइ ? जहन्नेणं अन्तोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोपमाई अन्तोमुहुत्तमम्भहियाई, एवं नीललेसरसवि, काऊलेसरसवि; तेऊलेसस्स णं भन्ते ! अन्तरकालओ केवचिरं होइ ? जहन्नेणं अन्तोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं पम्हलेसस्सवि, सुक्कलेसस्सवि दोहवि एवमंतरं, अलेसस्स णं भन्ते ! अन्तरंकालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! साइयस्स अपज्जवसियरस नत्थि अन्तरं । लेकिन पुद्गल द्रव्य - जीवा० प्रति ६ । गा २६६ । पृ० २५८ कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट मुहुर्त अधिक तेतीस सागरोपम है तथा तेजोलेश्या का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट वनस्पति काल है तथा पद्मलेश्या तथा शुक्ललेश्या का अन्तरकाल तेजोलेश्या के अन्तरकाल के समान होता है। अलेशी सादि अपर्यवसित है तथा अन्तरकाल नहीं है । यह विवेचन जीव की अपेक्षा है, द्रव्यलेश्या, भावलेश्या दोनों पर लागू हो सकता है । (ख) अन्तरमवरूक्कसं किण्हतियाणं मुहुत्त अन्तं तु । उवहीणं तेन्तीसं अहियं होदित्ति निट्ठि ।। ५५२ उतियाणं एवं वरि य उक्कस्स विरहकालो दु । पोग्गलवरिवट्टा हु असंखेज्जा होंति नियमेण ।। ५५३ Jain Education International - गोजी० गा० कृष्णादि तीन प्रथम लेश्या का जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक तेतीस सागरोपम है। तेजो आदि तीन शुभलेश्याओं का अन्तरकाल भी इसी प्रकार है परन्तु कुछ विशेषता है। शुभलेश्याओं का उत्कृष्ट अन्तरकाल नियम से असंख्यात् पुद्गल परावर्तन है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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