SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश १५ द्रव्य लेश्या के प्रदेश कण्हलेस्सा णं भन्ते। कइ पएसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! अणंत पएसिया पन्नत्ता, एवं जाव सुकलेस्सा। -प० प १७ । उ ४ । सू ४६ । पृ० ४४६ कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या अनन्त प्रदेशी होती है। द्रव्य लेश्या का एक स्कन्ध अनन्त प्रदेशी होता है। १६ द्रव्य लेश्या और प्रदेशावगाह क्षेत्रावगाह (क) कण्हलेस्सा णं भंते! कइ पएसोगाढा पन्नत्ता ? गोयमा! असंखेज्ज पएसोगाढा पन्नत्ता, एवं जाव सुक्कलेस्सा। ___-पण्ण० प० १७ । उ ४ । सू ४६ पृ० ४४६ कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या असंख्यात् प्रदेश क्षेत्र अवगाह करती है। यह लेश्या के एक स्कंध की अपेक्षा वर्णन मालूम होता है । (ख) लेश्या क्षेत्राधिकार-क्षेत्रावगाह सट्ठाणंसमुग्धादे उववादे सव्वलोय सुहाणं । लोयस्सासंखेज्जदिभागं खेत्तं तु तेउतिये ।। ५४२ -गोजी० गाथा सुक्कस समुग्धादे असंखलोगा य सव्व लोगो य । -गोजी० पृ० १६६। गाथा अनअंकित प्रथम तीन लेश्याओं का सामान्य से ( सर्व लेश्या द्रव्यों की अपेक्षा ) स्वस्थान, समुद्घात तथा उपपाद् की अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण क्षेत्र अवगाह है तथा तीन पश्चात् की लेश्याओं का लोक के असंख्यात् भाग क्षेत्र परिमाण अवगाह है। शुक्ललेश्या का क्षेत्रावगाह समुद्घात का अपेक्षा लोक का असंख्यात् भाग (बहु भाग ) या सर्वलोक परिमाण है । .१७ द्रव्यलेश्या की वर्गणा कण्हलेस्साए णं भंते ! केवइयाओ वग्गणाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अणंताओ वग्गणाओ एवं जाव सुक्कलेस्साए । कृष्ण यावत् शुक्ल लेश्याओं की प्रत्येक की अनन्त वर्गणा होती है। -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४६ । पृ० ४४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy