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________________ २७० लेश्या - कोश वैमानिकों के विमानों के वर्णों, शरीर के वर्गों तथा लेश्या का तुलनात्मक चार्ट : विमान शरीर लेश्या पाँचों वर्ण तेजो सौधर्म ईशान सनत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्मलोक लान्तक महाशुक्र सहस्रार आनत यावत् अच्युत कृष्ण बाद चार "" Jain Education International लाल-पीत- शुक्ल 33 13 पीत- शुक्ल शुक्ल "" "" तप्तकनकरक्तआभा "" पद्मपक्ष्मगौर 'अल्ल' मधूकवर्ण "" "" " " "" "2 "" पद्म 33 "" ग्रैवेयक परम शुक्ल अनुत्तरौपपातिक परम शुक्ल परम शुक्ल टीकाकार ने सौधर्म तथा ईशान देवों के शरीर का वर्ण उत्तप्त कनक की रक्त आमा के समान बताया है । सनत्कुमार माहेन्द्र देवों के शरीर का वर्णं पद्मपमगौर अथवा पद्मकेशर तुल्य शुभ्र वर्ण कहा है। ब्रह्मलोक देवों के शरीर का वर्ण मूल पाठ में 'अल्लमधुगवण्णाभा' है लेकिन टीकाकार ने उसे सनत्कुमार - माहेन्द्र के वर्ण की तरह, 'पद्मपदमगौर' ही कहा है । तथा लतिक से वेयक तक उत्तरोत्तर शुक्ल, शुक्लतर, शुक्लतम कहा है । अनुत्तरौपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परम शुक्ल कहा है। टीकाकार ने एक प्राकृत गाथा उद्धृत की है- "दो कल्पों में कनकतप्तरक्त आभा के वर्ण होता है पश्चात् के तीन कल्पों के शरीर का वर्ण पद्मपक्ष्मगौर तत्पश्चात् देवों के शरीर का वर्ण शुक्ल होता है ।" समान शरीर का वर्ण होता है, For Private & Personal Use Only शुक्ल " 33 29 *ε६·१३ नारकियों के नरकावासों का वर्ण, शरीरों का वर्ण तथा उनकी लेश्या : इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरया केरसिया वण्णेणं पन्नत्ता ? गोयमा ! काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणया परमकण्हा वणेणं पन्नत्ता, एवं जाव असत्तमाए । "" - जीवा प्रति ३ । उ १ (नरक) । सू ८३ । पृ० १३८-३६ टीका---रत्नप्रभायां पृथिव्यां नरकाः कीदृशा वर्णेन प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - गौतम ! कालाः तत्र कोऽपि निष्प्रतिभतया मंदकालोऽप्याशंकयेत् ततस्तदाशंकाव्यव www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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