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________________ २५२ लेश्या-कोश गोच्छे चउत्थओ उण, पंचमओबेति गेण्हह फलाई ? छट्टो बेंती पडिया, एए च्चिय खाह घेत्तुं जे॥ दिटुंतस्सोवणओ, जो बेंति तरू विछिन्नमूलाओ। सो वट्टइ किण्हाए, साहमहल्ला उ नीलाए। हवइ पसाहा काऊ, गोच्छा तेऊ फला य पम्हाए । पडियाए सुक्कलेसा, अहवा अणं उदाहरणं ॥ -आव० अ ४ | सू ६ । हारि० टीका ख) पहिया जे छप्पुरिसा परिभट्टारणमझ देसम्हि । फलभरियरुक्खमेगं पेक्खित्ता ते विचितं ति ॥ णिम्मूल खंध साहुवसाहुं छित्तुं चिणित्तु पडिदाई। खाउं फलाई इदि जं मणेण वयणं हवे कम्मं ॥ -गोजी० गा ५०६-७ । पृ० १८२ छः बंधु किसी उपवन में घूमने गये तथा एक फल से लदे भरे-पूरे अवनत शाखा वाले जामुन वृक्ष को देखा। सबके मन में फलाहार करने की इच्छा जागृत हुई । छओं बंधुओं के मन में लेश्या जनित अपने-अपने परिणामों के कारण भिन्न-भिन्न विचार जागृत हुए और उन्होंने फल खाने के लिये अलग-अलग प्रस्ताव रखे, उनसे उनकी लेश्या का अनुमान किया जा सकता है। प्रथम बंधु का प्रस्ताव था कि कौन पेड़ पर चढ़कर तोड़ने की तकलीफ करे तथा चढ़ने में गिरने की आशंका भी है। अतः सम्पूर्ण पेड़ को ही काट कर गिरा दो और आराम से फल खाओ। __ द्वितीय बंधु का प्रस्ताव आया कि समूचे पेड़ को काटकर नष्ट करने से क्या लाभ ? बड़ी-बड़ी शाखायें काट डालो । फल सहज ही हाथ लग जायंगे तथा पेड़ भी बच जायगा। तीसरा बंधु बोला कि बड़ी डालें काटकर क्या लाभ होगा ? छोटी शाखाओं में ही फल बहुतायत से लगे हैं उनको तोड़ लिया जाय। आसानी से काम भी बन जायगा और पेड़ को भी विशेष नुकसान न होगा। चतुर्थ बंधु ने सुझाव दिया कि शाखाओं को तोड़ना ठीक नहीं। फल के गुच्छे ही तोड़ लिये जायं। फल तो गुच्छों में ही हैं और हमें फल ही खाने हैं। गुच्छे तोड़ना ही उचित रहेगा। पंचम बंधु ने धीमे से कहा कि गुच्छे तोड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। गुच्छे में तो कच्चे-पक्के सभी तरह के फल होंगे। हमें तो पक्के मीठे फल खाने हैं। पेड़ को झकझोर दो परिपक्व रसीले फल नीचे गिर पड़ेंगे। हम मजे से खा लेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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