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________________ लेश्या-कोश राशियुग्म में जो कृतयुग्म राशि रूप नारकी आत्म असंयम का आश्रय लेकर जीते हैं वे सलेशी हैं, अलेशी नहीं हैं तथा वे सलेशी नारकी क्रियावाले हैं, क्रिया रहित नहीं हैं। वे सक्रिय नारकी उसी भव में सिद्ध नहीं होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं करते हैं । कृतयुग्म राशि असुरकुमारों के विषय में जैसा नारकी के विषय में कहा वैसा ही निरवशेष कहना। इसी प्रकार यावत् तिर्यंच पंचेन्द्रिय तक समझना परन्तु वनस्पतिकायिक जीव असंख्यात अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं। जो कृतयुग्म राशि रूप मनुष्य आत्मसंयम का आश्रय लेकर जीते हैं वे सलेशी भी हैं, अलेशी भी हैं । यदि वे अलेशी हैं तो वे क्रियावाले नहीं हैं, क्रियारहित हैं । तथा वे अक्रिय मनुष्य उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। यदि वे सलेशी हैं तो वे क्रिया वाले हैं, क्रियारहित नहीं है तथा उन सक्रिय जीवों में कितने ही उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं तथा कितने ही उसी भव में सिद्ध नहीं होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त नहीं करते हैं। जो कृतयुग्म राशि रूप मनुष्य आत्म असंयम का आश्रय लेकर जीते हैं वे सलेशी हैं, अलेशी नहीं है तथा वे सलेशी मनुष्य क्रियावाले हैं, क्रियारहित नहीं है तथा वे सक्रिय मनुष्य उसी भव में सिद्ध नहीं होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं करते हैं। __वानव्यन्तर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा नारकी के विषय में कहा वैसा ही समझना। रासीजुम्मतेओयनेरइया xxx एवं चेव उद्दसओ भाणियव्वो। xxx सेसं तंव जाव वेमाणिया । ( उ २ ) रासीजुम्मदावरजुम्मनेरच्या xxx एवं चेव उद्दसओ x x x सेसं जहा पढमुद्दसए जाव वेमाणिया । ( उ ३ ) .. रासीजुम्मकलिओगनेरइया xxx एवं चेव xxx सेसं जहा पढमुद्दे सए एवं जाव वेमाणिया । ( उ ४ ) -भग० श ४१ । उ २ से ४ । पृ० ६३६ _ राशि युग्म में व्योज राशि रूप नारकी यावत् वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा राशियुग्म कृतयुग्म प्रथम उद्देशक में कहा वैसा ही समझना। राशियुग्म में द्वापरयुग्म रूप नारकी यावत् वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा प्रथम उद्देशक में कहा वैसा ही जानना। राशियुग्म में कल्योज राशि रूप नारकी यावत् वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा प्रथम उद्देशक में कहा वैसा ही जानना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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