SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ लेश्या-कोश रोवमा अन्तोमुहुत्तमब्भहियाई । ठिई एवं चेव । नवरं अन्तोमुहुत्तं नत्थि जहन्नगं', तहेव सव्वत्थ सम्मत्त-नाणाणि नत्थि । विरई विरयाविरई अणुत्तरविमाणोववत्तिएयाणि नत्थि। सव्वपाणा० ( जाव ) नो इण? समढ़। xxx एवं एयाणि सत्त अभवसिद्धियमहाजुम्मसयाणि भवन्ति । ___-भग० श ४० । श १६ से २१ । पृ० ६३४ कृष्णलेशी अभवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय के सम्बन्ध में जैसा इनके औधिक ( अभवसिद्धिक) शतकों में कहा वैसा कृष्णलेश्या अभवसिद्धिक शतक में भी कहना लेकिन ये जीव कृष्णलेश्या वाले होते हैं। इनकी काय स्थिति तथा स्थिति के सम्बंध में जैसा औधिक कृष्णलेश्या शतक में कहा वैसा ही कहना। . कृष्णलेश्या शतक की तरह छः लेश्याओं के छः शतक कहने लेकिन कायस्थिति और स्थिति औधिक शतक की तरह कहनी। लेकिन शुक्ललेश्या में उत्कृष्ट कायस्थिति साधिक अन्तमुहूर्त इकतीस सागरोपम की कहनी। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना लेकिन जघन्य अन्तर्महूर्त अधिक न कहना। सर्व स्थानों में सम्यक्त्व तथा ज्ञान नहीं है। विरति, विरताविरति भी नहीं है तथा अनुत्तर विमान से आकर उत्पत्ति भी नहीं है। सर्वप्राणी यावत् सर्वसत्त्व पूर्व में अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं-इस प्रश्न के उत्तर में यह सम्भव नहीं है' ऐसा कहना। इस प्रकार अभवसिद्धिक के सात महायुग्म शतक होते हैं। महायुग्म सज्ञी पंचेन्द्रिय के इक्कीस शतक होते हैं। तथा सर्व महायुग्म शतक इक्कासी होते हैं। ८७ सलेशी राशियुग्म जीव : [राशियुग्म संख्या चार प्रकार की होती है यथा-(१) कृतयुग्म, (२) योज, (३) द्वापरयुग्म तथा (४) कल्योज। जिस संख्या में चार का भाग देने चार बचे वह कृतयुग्म संख्या कहलाती है, यदि तीन बचे तो वह व्योज संख्या कहलाती है, यदि दो बचे तो वह द्वापरयुग्म संख्या कहलाती है, यदि एक बचे तो वह कल्योज संख्या कहलाती है। क्षुद्रयुग्म तथा राशियुग्म की आगमीय परिभाषा समान हैं लेकिन विवेचन अलग-अलग है। अतः अन्तर अवश्य होना चाहिए। क्षुद्रयुग्म में केवल नारकी जीवों का विवेचन है। राशियुग्म में दण्डक के सभी जीवों का विवेचन है। यहाँ पर राशियुग्म जीवों का निम्नलिखित १३ बोलों से विवेचन किया गया है । विस्तृत विवेचन राशियुग्म कृतयुग्म नारकी में किया गया है। बाकी में इसकी भुलावण है तथा यदि कहीं भिन्नता है तो उसका निर्देशन है । १- यहाँ 'जहन्नगं' शब्द का भाव समझ में नहीं आया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy