SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ लेश्या-कोश ___ जहा तेऊलेसा सयं तहा पम्हलेस्सा सयं वि । नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तभब्भहियाई। एवं ठिईए वि । नवरं अंतोमुहुत्तं न भन्नइ, सेसं तं चेव। एवं एएसु पंचसु सएसु जहा कण्हलेस्सा सए गमओ तहा नेयव्यो, जाव अणंतखुत्तो। ___ सुक्कलेस्ससयं जहा ओहियसयं । नवरं संचिट्ठणा ठिई य जहा कण्हलेस्ससए, सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। -भग० श ४० । श २ से ७ । पृ० ६३२-३३ कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म संजी पंचेन्द्रिय कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं इत्यादि प्रश्न ? जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म संशी पंचेन्द्रिय उद्देशक में कहा वैसा ही यहाँ जानना । लेकिन बंध, वेद, उदय, उदीरणा, लेश्या, बंधक, संज्ञा, कषाय तथा वेदबंधक-इन सबके सम्बन्ध में जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म द्वीन्द्रिय के पद में कहा वैसा ही कहना। कृष्णलेशी जीव तीनों वेद वाले होते हैं, अवेदी नहीं होते हैं। कायस्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट साधिक अन्तर्मुहूर्त तैंतीस सागरोपम की होती है। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना लेकिन स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक न कहना। बाकी सब प्रथम उद्देशक में जैसा कहा वैसा ही यावत् 'अणंतखुत्तो' तक कहना। इसी प्रकार सोलह युग्मों में कहना। प्रथम समय कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय के सम्बन्ध में जैसा प्रथम समय के संशी पंचेन्द्रिय के उद्देशक में कहा वैसा ही कहना लेकिन वे जीव कृष्णलेशी होते हैं। इसी प्रकार सोलह युग्मों में कहना । इस प्रकार कृष्णलेश्या शतक में भी ग्यारह उद्देशक कहना । पहला, तीसरा, पाँचवाँ-ये तीनउद्देशक एक समान गमक वाले हैं, शेष आठ उद्देशक एक समान गमक वाले हैं। इसी प्रकार नीललेश्या वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में महायुग्म शतक कहना लेकिन कायस्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की होती है । इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना। पहला, तीसरा, पाँचवाँ -ये तीन उद्देशक एक समान गमक वाले हैं, शेष आठ उद्देशक एक समान गमक वाले हैं । इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में महायुग्म शतक कहना लेकिन कायस्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम की होती है। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना । पहला, तीसरा, पाँचवाँ-ये तीन उद्देशक एक समान गमक वाले हैं शेष आठ उद्देशक एक समान गमक वाले हैं। इसी प्रकार तेजोलेश्या वाले जीवों के सम्बन्ध में महायुग्म शतक कहना । कायस्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy