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________________ लेश्या - कोश २१६ व्वाणि | नवरं सम्मत्त-नाणाणि नत्थि, सेसं तं चेव । एवं एयाणि बारस बेइ दियमहाम्याणि भवंति | - भग० श ३६ । श २ से १२ | पृ० ६३०-३१ कृष्णलेशी कृतयुग्म - कृतयुग्म द्वीन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में कृतयुग्म - कृतयुग्म औधिक द्वीन्द्रिय शतक की तरह ग्यारह उद्देशक सहित महायुग्म शतक कहना लेकिन लेश्या, कार्यस्थिति तथा आयु स्थिति एकेन्द्रिय कृष्णलेशी शतक की तरह कहने। इस प्रकार सोलह महायुग्म शतक कहने । इसी प्रकार नीललेशी तथा कापोतलेशी शतक भी कहने । भवसिद्धिक कृतयुग्म- कृतयुग्म द्वीन्द्रिय के सम्बन्ध में भी पूर्व गमक की तरह अर्थात् भवसिद्धिक कृतयुग्म - कृतयुग्म एकेन्द्रिय शतक की तरह चार शतक कहने लेकिन सर्व प्राणी यावत् सर्व सत्त्व पूर्व में उत्पन्न हुए हैं— इस प्रश्न के उत्तर में 'यह सम्भव नहीं' ऐसा कहना | भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म द्वीन्द्रिय के जैसे चार शतक कहे वैसे ही अभवसिद्धिक के भी चार शतक कहने। लेकिन सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होते हैं । *८६३ सलेशी महायुग्म त्रीन्द्रिय जीव : बारस सया कायव्वा बेइ दियसयसरिसा । असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई । एगूणवन्नं राइ दियाइ, सेसं तहेव । कडजुम्मकडजुम्मतेइ दिया णं भंते ! कओ उववज्जंति० ? एवं तेइ दिएस वि नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स ठिई जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं - भग० श ३७ । पृ० ६३१ महायुग्म द्वीन्द्रिय शतक की तरह औधिक, कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी महायुग्म त्रीन्द्रिय जीवों के भी औधिक, भवसिद्धिक तथा अभवसिद्धिक पदों से बारह शतक कहने। लेकिन अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग की, उत्कृष्ट तीन गाउ ( क्रोश ) प्रमाण की स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट उनचास रात्रि दिवस की कहनी । ८६४ सलेशी महायुग्म चतुरिन्द्रिय जीव : चरिदिएहि वि एवं चैव बारस सया कायव्वा । अंगुलम्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । उक्कोसेणं छम्मासा | सेसं जहा बेइ दियाणं | Jain Education International For Private & Personal Use Only नवरं ओगाहणा जहन्नेणं ठिई जहन्नेणं एक्कं समयं, - भग० श ३८ | पृ० ६३१ www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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