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________________ २०८ लेश्या-कोश क्रियावादी सलेशी अनंतरोपपन्न नारकी भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं । इस प्रकार इस अभिलाप से लेकर औधिक उद्देशक (८२.३ ) में नारकियों के सम्बन्ध में जैसी वक्तव्यता कही वैसी वक्तव्यता यहाँ भी कहनी। इसी प्रकार यावत् वैमानिक देव तक जानना लेकिन जिसके जो संभव हो वह कहना । इस लक्षण से जो क्रियावादी, शुक्लपक्षी, सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं वे भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं। अवशेष सब जीव भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं। सलेशी परंपरोपपन्न नारकी आदि ( यावत् वैमानिक ) जीवों के सम्बन्ध में जैसा औधिक उद्देशक में कहा वैसा ही तीनों दण्डकों (क्रियावादित्वादि, आयुबंध, भव्याभव्यत्वादि ) के सम्बन्ध में निरवशेष कहना। । इस प्रकार इसी क्रम से बंधक शतक ( देखो '७४ ) में उद्देशकों की जो परिपाटी कही है उसी परिपाटी से यहाँ अचरम उद्देशक तक जानना। विशेषता यह है कि 'अनन्तर' शब्द घटित चार उद्देशकों में तथा 'परंपर' घटित चार उद्देशकों में एक-सा गमक कहना। इसी प्रकार 'चरम' तथा 'अचरम' शब्द घटित उद्देशकों के सम्बन्ध में भी कहना लेकिन अचरम में अलेशी, केवली, अयोगी के सम्बन्ध में कुछ भी न कहना। .८३ सलेशी जीव और आहारकत्व-अनाहारकत्व : सलेस्से णं भंते ! जीवे किं आहारए अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए, सिय अणाहारए, एवं जाव वेमाणिए । सलेस्सा णं भंते ! जीवा किं आहारगा अणाहारगा ? गोयमा ! जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, एवं कण्हलेस्सा वि नीललेस्सा वि काऊलेस्सा वि जीवेगिदियवज्जो तियभंगो । तेऊलेस्साए पुढविआउवणस्सइकाइयाणं छब्भंगा, सेसाणं जीवाइओ तियभंगो जेसिं अत्थि तेऊलेस्सा, पम्हलेस्साए सुक्लेस्साए य जीवाइओ तियभंगो। अलेस्सा जीवा मणुस्सा सिद्धा य एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि नो आहारगा अणाहारगा। –पण्ण० प २८। उ २ । सू ११। पृ० ५०६-५१० सलेशी कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीव ( एकवचन ) कदाचित् आहारक, कदाचित् अनाहारक होते हैं। इस प्रकार दंडक के सभी जीवों के विषय में जानना । जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने। सलेशी जीव (बहुवचन )-औधिक तथा एकेन्द्रिय जीव में एक भंग होता है, यथा-आहारक भी होते हैं, अनाहारक भी होते हैं। क्योंकि ये दोनों प्रकार के जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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