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________________ २०६ लेश्या-कोश वि, वेणइयवाई वि। जहा सलेस्सा एवं जाव सुक्कलेस्सा। अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावाई किं भवसिद्धिया पुच्छा ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया। xxx एवं नेरइया वि भाणियव्वा नवरं नायव्वं जं अस्थि, एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा, पुढविक्काइया सव्वट्ठाणेसु वि मज्झिल्लेसु दोसु वि समोसरणेसु भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइदियतेइ दियचउरिदिया एवं चेव नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे एएसु चेव दोसु मझिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, सेसं तं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरक्या, नवरं नायब्वं जं अत्थि, मणुस्सा जहा ओहिया जीवा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा। -भग० श ३० । उ १ । प्र ३२ से ३४ । पृ० ६०८-६ क्रियावादी सलेशी जीव भवसिद्धिक होते , अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी सलेशी जीव भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं । कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीवों के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा सलेशी जीवों के सम्बन्ध में कहा है। क्रियावादी अलेशी जीव भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। सलेशी यावत् कापोतलेशी नारकी के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा सलेशी जीव के सम्बन्ध में कहा है । इसीप्रकार सलेशी यावत् तेजोलेशी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कहना। _ पृथ्वीकायिक यावत् चतुरिन्द्रिय के सर्वलेश्या स्थानों में मध्य के दो समवसरणों में भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं। सलेशी यावत् शुक्ललेशी तिर्यंच पंचेन्द्रिय के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा नारकी के सम्बन्ध में कहा है। क्रियावादी सलेशी यावत् शुक्ललेशी तथा अलेशी मनुष्य भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी सलेशी यावत् शुक्ललेशी मनुष्य भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं। वानव्यंतर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा असुरकुमार देवों के सम्बन्ध में कहा गया है। जिसमें जितनी लेश्या हो उतनी लेश्या का विवेचन करना। ८२.४ सलेशी अनंतरोपपन्न यावत् अचरम जीव तथा मतवाद की अपेक्षा से वक्तव्यता: अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया कि किरियावाई० पुच्छा ? गोयमा ! किरियावाई वि जाव वेणइयवाई वि। सलेस्सा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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