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________________ १८२ लेश्या-कोश ___ कोई एक सलेशी जीव पापकर्म बांधा है, बांधता है, बांधेगा; कोई एक बांधा है, बांधता है, न बांधेगा; कोई एक बांधा है, नहीं बांधता है, वांधेगा; कोई एक वांधा है, न बांधता है, न बांधेगा। कोई एक कृष्णलेशी जीव प्रथम भंग से, कोई एक द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है। इसी प्रकार नीललेशी यावत् पद्मलेशी जीव के सम्बन्ध में जानना। कोई एक शुक्ललेशी जीव प्रथम विकल्प से, कोई एक द्वितीय विकल्प से, कोई एक तृतीय विकल्प से, कोई एक चतुर्थ विकल्प से पापकर्म का बंधन करता है। अलेशी जीव चतुर्थ विकल्प से पापकर्म का बंधन करता है। नेरइए णं भंते ! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ ? गोयमा! अत्थेगइए बंधी० पढमबिइया । सलेस्से णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं० १ एवं चेव । एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काऊलेस्से वि। xxx एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं तेऊलेस्सा। xxx सव्वथ पढमबिइया भंगा, एवं जाव थणियकुमारस्स, एवं पुढविकाइयस्स वि, आउकाइयस्स वि, जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स वि सव्वत्थ वि पढमबिइया भंगा, नवरं जस्स जा लेस्सा।xxx मणूसस्स जच्चेव जीवपदे वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्या। वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स । जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेव, नवरं लेस्साओ जाणियव्वाओ। -भग० श २६ । उ १ । प्र १४, १५ । प्र० ८६६ कोई एक सलेशी नारकी प्रथम भंग से, कोई एक द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है। इसी प्रकार कृष्णलेशी, नीललेशी व कापोतलेशी नारकी के संबंध में जानना । इसी प्रकार सलेशी, कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी व तेजोलेशी असुरकुमार भी कोई प्रथम, कोई द्वितीय विकल्प से पाप कर्म का बंधन करता है। ऐसा ही यावत् स्तनितकुमार तक कहना। इसीप्रकार सलेशी पृथ्वीकायिक व अप्कायिक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिक कोई प्रथम, कोई द्वितीय विकल्प से पाप कर्म का बंधन करता है परन्तु जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने। मनुष्य में जीव पद की तरह वक्तव्यता कहनी । वानव्यंतर असुरकुमार की तरह कोई प्रथम, कोई द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है । इसी तरह ज्योतिषी तथा वैमानिक देव कोई प्रथम, कोई द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है परन्तु जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने। ७४.१२ सलेशी औधिक जीव दंडक और ज्ञानावरणीय कर्म बंधन : जीवे णं भंते ! नाणावरणिज्ज कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ एवं जहेव पापकम्मरस वत्तव्वया तहेव नाणावरणिज्जस्स वि भाणियव्वा, नवरं जीवपदे, मणुस्सपदे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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