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________________ जीव ६ उपवर्गों में, सलेशी जीव २६ उपवर्गों में तथा विविध ह उपवर्गों में विभाजित किए गए हैं। यथासम्भव वर्गीकरण की सब भूमिकाओं में एकरूपता रखी जायगी। लेश्या का विषयांकन हमने ०४०४ किया है। इसका आधार यह है कि सम्पूर्ण जैन वाङमय को १०० भागों में विभाजित किया गया है (देखें मूलवर्गीकरण सूची पृ० 14) इसके अनुसार जीव-परिणाम का विषयांकन ०४ है। जीव परिणाम भी सौ भागों में विभक्त किया गया है ( देखें जीव-परिणाम वर्गीकरण सूची पृ० 17 )। इसके अनुसार लेश्या का विषयांकन ०४ होता है। अतः लेश्या का विषयांकन हमने ०४०४ किया है। लेश्या के अन्तर्गत आनेवाले विषयों के आगे दशमलव का चिह्न हैं, जैसे ५८ तथा ५८ के उपवर्ग के आगे फिर दशमलव का चिह्न है, जैसे '५८२ तथा '५८२ के विषय का उपविभाजन होने से इसके बाद आने वाली संख्या के आगे भी दशमलव विन्दु रहेगा (देखें चार्ट पृ० 18, 19)। सामान्यतः अनुवाद हमने शाब्दिक अर्थ रूप ही किया है लेकिन जहाँ विषय की गम्भीरता या जटिलता देखी है वहाँ अर्थ को स्पष्ट करने के लिए. विवेचनात्मक अर्थ भी किया है। विवेचनात्मक अर्थ करने के किये हमने सभी प्रकार की टीकाओं तथा अन्य सिद्धान्त ग्रंथों का उपयोग किया है। छद्मस्थता के कारण यदि अनुवाद में या विवेचन करने में कहीं कोई भूल, भ्रांति व त्रुटि रह गई हो तो पाठकवर्ग सुधार लें। वर्गीकरण के अनुसार-जहाँ मूल पाठ नहीं मिला है अथवा जहाँ मूल पाठ में विषय स्पष्ट रहा है वहाँ मूल पाठ के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए हमने टीकाकारों के स्पष्टीकरण को भी अपनाया है तथा स्थान-स्थान पर टीका का पाठ भी उद्ध त किया है ! यद्यपि हमने संकलन का काम आगम ग्रन्थों तक ही सीमित रखा है तथापि सम्पादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के काम में नियुक्ति, चूर्णि, वृत्ति, भाष्य आदि टीकाओं का तथा अन्य सिद्धान्त ग्रन्थों का भी आवश्यकतानुसार उपयोग करने का हमारा विचार है । हमें खेद है कि हमारी छद्मस्थता के कारण तथा प्रूफरीडिंग की दक्षता के अभाव में तथा मुद्रक के कर्मचारियों के प्रमादवश अनेक अशुद्धियाँ रह गई हैं। हमने अशुद्धियों को तीन भागों में विभक्त किया है-१-मूलपाठ की अशुद्धि, २-संदर्भ की अशुद्धि तथा ३-अनुवाद की अशुद्धि। आशा है पाठकगण अशुद्धियों की अधिकता के लिए हमें क्षमा करेंगे तथा आवश्यकतानुसार संशोधन कर लेंगे। शुद्धि-पत्र पुस्तक के शेष में दिए गये हैं। भविष्य में इस बार के प्राप्त अनुभव से अशुद्धियाँ नहीं रहेंगी ऐसी आशा है। ___ लेश्या-कोश हमारी कोश परिकल्पना का परीक्षण (ट्रायल) है । अतः इसमें प्रथमानुभव की अनेक त्रुटियाँ हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन इस प्रकाशन से हमारी [ 12 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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