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________________ ७८ लेश्या - कोश १८ चतुरिंद्रिय में— देखो ऊपर द्वीन्द्रिय के पाठ (१६) तीन लेश्या होती है । * १६ तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में - (क) पंचेन्दियतिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेसा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा | -- पुण्ण० प १७ । उ २ | सू १३ | पृ० ४३८ (ख) पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं छ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा | – ठाण० स्था ६ | सू. ५०४ | पृ० २७२ (ग) पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं छल्लेस्साओ । - ठाण० स्था २ । उ १ सू० ५१ | पृ० १८४ तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के छ लेश्या होती है यथा - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । संक्लिष्टश्या तीन होती है (घ) पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओलेस्साओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा । - ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १८१ । पृ० २०५ तिर्यच पंचेन्द्रिय में तीन संक्लिष्ट लेश्या होती है— यथा - कृष्ण, नील, कापोत । असं क्लिष्ट लेश्या तीन होती है -- Jain Education International (ङ) पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओलेस्साओ असंकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तंजा - तेऊलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा | ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १८१ । पृ० २०५ तिर्यच पंचेन्द्रिय में तीन असं क्लिष्ट लेश्या होती है यथा - तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या । * १६१ तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के विभिन्न भेदों में (क) (खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं ) एएसि णं भंते! जीवाणं कइलेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा । (ख) ( भुयपरिसप्पथलय रपंचेंदिय तिरिषखजोणियाण ) एवं जहा खहयराण aa | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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