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________________ ( 49 ) ? दीर्घनिकाय के श्रामण्य फल सुक्त, संयुक्त निकाय के दहर सुत्त तथा सुत्तनिपात के सभयसूत्त में बुद्ध से पूर्ववर्ती छः तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है । उनके नाम है - पूरण काश्यप, मंक्बलि गोशालक, १ निगंठ नातपुत्त (महावीर ), संजय वेलड्ढित्त" क्रच्चायन और अजित केश कंबलि । इन सभी को बहुत लोगों द्वारा सम्मानित, अनुभवी, चिरप्रवजित व वयोवृद्ध कहा गया है, किन्तु बुद्ध के ये विशेषण नहीं लगाये गये। इसके विपरीत उन्हें उक्त छह की अपेक्षा जन्म से अल्पवयस्क व प्रव्रज्या में नया कहा गया है । इससे सिद्ध है कि महावीर बुद्ध से ज्येष्ठ थे और उनसे पहले ही प्रत्रजित हो चुके थे । झिमनिकाय के सामगाम सुत्त में वर्णन आया है कि जब भगवान् बुद्ध साम गाम में विहार कर रहे थे तब उनके पास चुन्द नामक श्रमणोद्देश आया और उन्हें यह संदेश दिया कि अभी-अभी पावा में निगंठ नातपुत्त ( महावीर ) की मृत्यु हुई है, और उनके अनुयायियों में कलह उत्पन्न हो गया है। बुद्ध के पट्ट शिष्य आनंद को इस समाचार से संदेह उत्पन्न हुआ कि कहीं बुद्ध भगवान् के पश्चात् उनके संघ में भी ऐसा विवाद उत्पन्न न हो जाये । अपने इस संदेह की चर्चा उन्होंने बुद्ध भगवान से भी की। यही वृत्तांत दीर्घनिकाय के पासादिक सुत्त में भी पाया जाता है इसी निकाय के संगीतिपरियाय सुत्त में भी बुद्ध के संघ में महावीर निर्वाण का यही समाचार पहुँचता है और उस पर बुद्ध के शिष्य सारिपुत्त ने भिक्षुओं को आमंत्रित कर वह समाचार सुनाया और भगवान बुद्ध के देने के लिए उन्हें सतर्क किया। इस पर भिक्षुओं को अच्छा उपदेश दिया । ये महावीर का निर्वाण बुद्ध के जीवनकाल में निर्वाण होनेपर विवाद की स्थिति उत्पन्न न होने स्वयं बुद्ध ने कहा – साधु, साधु सारिपुत्र, तुमने प्रकरण निस्संदेह रूप से प्रमाणित करते हैं कि हो गया था। यहीं नहीं, किन्तु इससे उनके अनुयायियों में कुछ विवाद भी उत्पन्न हुआ था जिसके समाचार से बुद्ध के संघ में कुछ चिंता भी उत्पन्न हुई थी और उसके समाधान का भी प्रयत्न किया गया था । इस प्रकार बुद्ध से महावीर की वरिष्ठता और पूर्वनिर्वाण निस्संदेह रूप से सिद्ध हो जाता है । और उनका दोनों की उक्त परम्परागत निर्वाणतिथियों से भी मेल बैठ जाता है । भगवान महावीर के युग में गोशालक भी तीर्थंकर होने का दावा करता था । वह नियतीवादी था । गोशालक के सिद्धांतों का वर्णन भगवती सूत्र, उपासगदशांगसूत्र आदि जैनागमों, जीवनिकाय, मज्झिमनिकाय, अंगुत्तरनिकायादि बोध ग्रन्थों में प्राप्त होता है । गोशालक भगवान् महाबीर के सम्पर्क में आया ; उनसे प्रभावित हुआ । छः वर्ष तक उनके साथ रहा । विद्याध्ययन किया । विपुल तेजोलेश्या आदि प्राप्त की । फिर वह भगवान् महावीर से पृथक् हो गया । वह कर्म, पुरुषार्थ, उद्यम और प्रयत्न में विश्वास नहीं करता था। जो कुछ होता है, वह सब नियत है, नियतिवश है, यह उसका सिद्धांत था। वह अपने को जिन, तीर्थंकर, अर्हत और केवली के रूप में घोषित करता । कहा जाता है कि गोशालक के अनुयायियों ने अपने गुरु द्वारा उपदिष्ट उक्त आठ चरमों के आधार पर अष्टचरमत्राद नामक सिद्धांत का प्रचलन किया । गोशालक को कुत्सित बतलाने में आगम साहित्य में कोई कसर नहीं रखी है । 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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