SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४१७ > सनत्कुमार देवोऽस्मादग्नि मित्रामिधो द्विजः । मरुम्माहेन्द्र कल्पेऽभूद्भारद्वाजो द्विजान्वये || ५३६ || आतो माहेन्द्रकल्पेऽनु मनुष्योऽनु ततश्च्युतः । नरकेषु त्रसस्थावरेष्वसंख्यातवत्सरान् ।। ५३७ ॥ फिर सनत्कुमार स्वर्ग में देव हुआ, फिर अग्निमित्र नाम का ब्राह्मण हुआ, फिर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ, फिर भारद्वाज नामक ब्राह्मण हुआ, फिर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ, फिर वहाँ से च्युत होकर मनुष्य हुआ, फिर अमंख्यात वर्षो तक मद को और त्रस - स्थावर योनियों में भ्रमण करता रहा । भान्त्वा ततो निर्गत्य स्थावराख्यो द्विजोऽभवत् । ततश्चतुर्थ कल्पेऽभूदचिश्वनन्दी ततश्च्युतः || ५३८ ॥ महाशुक्रे ततो देवस्त्रिखण्डे रास्त्रिपृष्ठवाक् । सप्तमे नरके गतविद्विषः || ५३९ ॥ तस्मात्तस्माच्च वहाँ से निकलकर स्थावर नाम का ब्राह्मण हुआ, फिर चतुर्थ स्वर्ग में देव हुआ, वहाँ से च्युत होकर विश्वनन्दी हुआ, फिर महाशुक्र देव हुआ, फिर त्रिपृष्ठ नाम का तीन खण्ड का स्वामी नारायण हुआ, फिर सप्तम नरक में उत्पन्न हुआ । वहाँ से निकलकर सिंह हुआ । ५३ आदिमे नरके तस्मात्सिंहः ततः सौधर्म कल्पेऽभूत्सिंहकेतुः फिर पहले नरक में गया, वहाँ से निकलकर फिर सिंह हुआ, उसी सिंह की पर्याय मैं उसने समीचीन धर्म धारण कर निर्मलता प्राप्त की, फिर सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नाम का उत्तम देव हुआ । सद्धर्मनिर्मलः । सुरोत्तमः ॥ ५४० ॥ कनकोज्ज्वलनामाभूत्तत्तो विद्याधराधिपः । देवः सप्तमकल्पेऽनु हरिषेणस्ततो नृपः ॥ ५४१ ॥ महाशुक्रे ततोदेवः प्रियमित्रोऽनु वक्रभृत् । स सहस्रारकल्पेऽभूद्देवः सूर्यप्रभाह्वयः ।। ५४२ ॥ राजानन्दाभिधस्तस्मात्पुष्पोत्तर विमानजः 1 अच्युतेन्द्रस्ततश्च्युत्वा वर्धमानो जिनेश्वरः ॥ ५४३ ॥ प्राप्तपंचमहाकल्पाणद्धिः प्रस्तुतसिद्धिभाक् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy