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________________ ( 46 ) जेन परम्परा में संबुद्ध की तीन कोटियाँ मिलती हैं -- १-स्वयं संबुद्ध अपने आप संबोधि प्राप्त करने वाला। २-प्रत्येक बुद्ध - किमी एक निमित्त में संबोधि प्राप्त करने बाला । ३-उपदेश बुद्ध-दूसरों के उपदेश से सम्बोधि प्राप्त करने वाला। तीर्थ कर स्वयं संबुद्ध होते हैं। भगवान् महावीर स्वयं - संबुद्ध थे। उन्हें अपने आप सम्बोधि प्राप्त हुई थी। 'कूणिक राजा-श्रेणिक का पुत्र था। 'कूणिक' नाम 'कूणि' शब्द से बना है । 'कूणि' का अर्थ है अंगुली का घाव वाला। 'कूणिक का अर्थ हुआ-अंगुली के घाव वाला । आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है रुढवणापि सा सत्य कूणिता भवदंगुलिः । ततः सपांशुरमणैः सोऽभ्यश्चीयत कूणिकाः। -त्रिशलाका० १०१६।३०६ आवश्यक चूर्णि में कूणिक को 'अशोकचन्द्र' भी कहा गया है। जैन परम्परा जहाँ उसे सर्वत्र 'कूणिक' कहती है वहाँ बौद्ध परम्परा उसे सर्वत्र अजातशत्रु कहती है । उपनिषिद और पुराणों में भी अजातशत्रु नाम व्यवहृत हुआ है। वस्तुस्थिति यह है कि कूणिक मूल नाम है और अजातशत्रु उसका एक विशेषण । कभी-कभी उपाधि या विशेषण मूल नाम से भी अधिक प्रचलित हो जाते हैं। जैसे-वर्धमान मूल नाम है। महावीर विशेषता परक ; पर व्यवहार में 'महावीर' ही सब कुछ बन गया है । बुद्ध और महावीर दो महान समसामयिक व्यक्ति थे। उस युग में पूरण काश्यप, मक्खली गोशालक, अजित केशम्बल, प्रक्रध, कात्यायन, संजय वेलट्ठिपुत्र ये अन्य भी धर्म प्रवर्तक थे ऐसा त्रिपिटक बताते हैं। जैन शास्त्र भी उनके विषय में कुछ अवगति देते है। गोशालक उस युग के एक उल्लेखनीय धर्मनायक थे। किन्तु दुर्भाग्य से उनकी मान्यताएँ प्रत्यक्षतः हमारे पास नहीं पहुँच रही है। वर्तमान युग में आजीवक सम्प्रदाय का कोई भी धर्म शास्त्र उपलब्ध नहीं है। इस सम्बन्ध में हम जो कुछ जानते हैं, वह जैन और बौद्ध शास्त्रों पर आधारित है। ___ महावीर ५२७ ई० पू० में तथा बुद्ध ५०२ ई० पू. में निर्वाण प्राप्त हुए थे-ऐसी ऐतिहासिक मान्यता है । बौद्ध ग्रन्थों में जो समुल्लेख निगण्ठ नातपुत्त व उनके शिष्यों से सम्बन्धित मिलते हैं, उनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर बुद्ध के युग में एक प्रतिष्ठित तीर्थ कर के रूप में थे व उनका निर्ग्रन्थ संघ भी वृहत एवं सक्रिय था। नालंदा में दुर्भिक्ष के समय में महावीर अपने वृहत संघ सहित वहाँ ठहरे हुए थे। ___ भगवान महावीर की अन्तिम देशना सोलह प्रहर की थी। भगवान छह भक्त से १-संयुत्त निकाय, गामणी संयुत्त (प्र. मं०७ । २- षोडश प्रहरान यावद् देशनां दत्तवान् । -सौभाग्य पंचम्यादि पर्व कथा संग्रह पत्र १०० सोलस प्रहराइ देसण करेइ-विविध तीर्थ कल्प पृ० ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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