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________________ ( ३६४ ) .२९ गोशालक की गति एवं स्खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले णामं मखलिपुत्ते से णं भंते ! गोसाले मखलिपुत्ते कालमासे कालं किया कहिं गए कहिं उवषण्णे ? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले णाम मखजिपुत्ते समणघायए जाप छउमत्थे चेव कालमासे कालं किया उड्ढे चंदिम-सूरिय० जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगल्याण देवाणं वापीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स पाषीसं सागरोधमाई ठिई पण्णत्ता। -भग श १५/प्र १६६।पृ• ६६८ श्रमण भगवान महावीर का अंतेवासी कुशिभ्य मंखलिपुत्र गोशालक, जो भमणों का घात करने वाला था यावत वह छद्मास्थावस्था में ही काल के समय में कालकरके ऊँचा चंद्र और सूर्य का उल्लंघन कर यावत् अच्युत कल्प में देवपने उत्पन्न हुआ है। गोशालक देव की स्थिति बाइस सागरोपम की है। .३० गोशालक और सहाजपुत्र श्रमणोपासक . तए णं से सहालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासीजिम्हाणं देवाणुप्पिया! तुम्भे मम धम्मायरियल्स जाष महावीरस्स संतेहि तच्चेहि तहिएहिं सब्भूएहि भावेहि गुणकित्तणं करेइ तम्हाणं अहं तुम्भे पाडिहारिएणं पीढ० जाव संथारएणं उपनिमन्तेमि, नो चेषर्णधम्मोत्ति वा तवोत्ति वा, तं गच्छहणं तुम्भे मम कुम्भारावणेसु पाडिहारियं पीढफलग जाप ओगिणिहत्ताणं विहर।। तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते सहालपुतस्स समणोवासयल्स एयमह पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ताकुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ जाप ओगिणिहत्ता गं विहरह। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सहालपुत्ते समणोपासयं जाष नो संचाइए बहूहि आघवाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य पिण्णषणाहि य निग्गन्थाओ पाषयणाओ चालित्तए पा खोभित्तए पा विपरिणामित्तए पा ताहे सन्ते तन्ते परितन्ते पोलासपुराओ नगराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणावयविहार विहरइ । -उवा• असू १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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