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________________ ( १८८) (क) बोरा मंडवभुज गोसाले वहण तेयझाषणया - आवनि गा ४८१ । पूर्वार्ध मनाय टीका-चोराको नाम सन्निवेशस्तत्र कचित् मंडपे गोष्ठिभोज्य कर्तुमारब्धं, तत् गोशाल उत्कुडुको निष्कुडुकश्च भूत्वा निरीक्षितवान् ततश्चौर इति कृत्वा तस्य वचनं-ताडनं, ततः शाप-प्रदानेन तेजस्स तस्य मंडपस्य ध्यामना-दाहा। (ख) ततश्च प्रययो स्वामी चोराके सन्निवेशने । तत्रैकत्र रहः स्थाने तस्थौ च प्रतिमाधरः।। ५४३ ॥ गोशालः क्षुधितोऽविक्षद् ग्रामे भिक्षार्थमुत्सुकः। गोष्ठीभक्तं तदा तत्र राध्यमानं ददर्शच ।। ५४४ ॥ (ग) भिक्षाक्षणाऽभून्नपात लीनो गोशाल पेक्षत | तत्र ग्रामे तदानीं चाऽभवञ्चोरभयं महत् ॥ ५४५ ।। चौरोऽयं चौरचारो षा निलीनो यदुदीक्षते । एवं वितयं ते ग्राम्या गोशालकमंकुटयन् ॥५४६ ।। मम धर्म गुरोस्तेजस्तपो पा यदि तद्रुतम् । दह्यतां मंडपोऽमीषामिति गोशालकोऽशपत् ॥५४७॥ व्यन्तभंगवद्भक्तैरदात स मंडपः । जगाम च जगन्नाथः सन्निवेशं कलम्बुकम् ॥ ५४८॥ -त्रिशलाका पर्व १०। सर्ग ३ भगवान महावीर छद्मस्थावस्था में जब चोराक ग्राम पधारे थे उस समय गोशालक भी उनके साथ था। क्षुधातुर गोशालक भिक्षार्थ ग्राम में गया। वहाँ उसे चोर समझ कर पीटा। गोशालक क्रोधित होकर भाप दिया कि यदि मेरे धर्मगुरु महावीर का तप तेज हो तो यह गोष्ठि मंडप भष्म हो जाना चाहिए। फलस्वरूप भगवान के भक्त व्यंतर देवों ने उस मंडप को जला दिया। गोशालकोऽपि भैक्षेण कुक्षिपूरण तत्परः । भगवन्तं महावीरमसेवत दिधानिशम् ॥ ३९० ॥ -त्रिशलाका पर्व १०॥सर्ग ३ भगवान महावीर के नालंदा के द्वितीय चतुर्मास में गोशालक भी भिक्षा के अन्न के उदरपोषण कर भगवान महावीर के पास अहर्निश सेवा करने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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