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________________ ( 44 ) अनुवादों में या विवेचन करने में कहीं-कहीं मूलभांति व त्रुटि रह गई हो तो पाठक वर्ग सुधार लें । जहाँ मूल पाठ में विषय स्पष्ट रहा है। वहाँ मूलपाठ के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए हमने टीकाकारों के स्पष्टीकरण को भी अपनाया है तथा स्थान-स्थान पर टीका का पाठ भी उद्धृत कर दिया है । अस्तु वर्धमान जीवन कोश-श्वेताम्बर आगम तथा दिगम्बर तथा श्वेताम्बर सिद्धांत ग्रन्थों से तैयार किया गया है। संपादन-वर्गीकरण, तथा अनुवाद के काम में नियुक्ति, चूर्णी, वृत्ति, भाष्य आदि का भी उपयोग किया गया है । संभव है हमारी छद्मस्था के कारण तथा मुद्रक के कर्मचारियों के प्रमादवश पुस्तक की छपाई में कुछ अशुद्धिया रह गई हो। आशा है पाठकगण अशुद्धियों के लिए हमें क्षमा करेंगे तथा आवश्यकता के अनुसार संशोधन कर लेंगे। हमारी कोश परिकल्पना का अभी भी परीक्षण काल चल रहा है अतः इसमें अनेक त्रुटियाँ हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । लेकिन इस हमारी परिकल्पना में पुष्टता आ रही है तथा हमारे अनुभव से यथेष्ट समृद्धि हुई है इसमें कोई संदेह नहीं है। पाठक वर्ग से सभी प्रकार के सुझाव अभिनन्दनीय है। चाहे वे सम्पादन, अनुवाद या अन्य किसी प्रकार के हों। आशा है इस विषय में विद्वद् वर्ग अपने सुझाव भेजकर हमें पूरा सहयोग देंगे। अस्तु वर्धमान जीवण कोश, चतुर्थ खण्ड की तैयारी अधिकांश संपूर्ण हो चुकी है, इसमें बर्धमान, तीर्थ कर के व्यक्तिगत साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका का विवेचन, उनके समकालीन राजा, विशिष्ट व्यक्तियों का आदि-आदि बिबेचन रहेगा। हम जैन दर्शन समिति के आभारी है जिसने वर्धमान जीवन कोश के प्रकाशन की सारी व्यवस्था की जिम्मेवारी ग्रहण की। युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के प्रति भी हम श्रद्धावनत है जिन्होंने अति व्यतता के कारण भी प्रस्तुत कोश पर आशीर्वचन लिखा। हम बंधुवर जबरमल जी भंडारी के अत्यन्त आभारी है जिन्होंमे सदा कार्य के लिए प्रोत्साहित किया है । लखनऊ के डा. ज्योतिप्रसाद जैन को हम कभी भूल नहीं सकते जिन्होंने समयसमय पर अपने बहुमूल्य सुझाव देते रहे तथा प्रस्तुत कोश पर "Fore word" लिखा । L, D. Institute of Indology अहमदावाद के भूतपूर्व डाइरेक्टर श्री दलसुख भ ई मालबणिया के प्रति हम आभारी है जिन्होंने समय-समय पर अपने बहुमूल्य सुझाव जनाते रहे । उन देशी-विदेशी की वह उपसूची भी परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा रख सकती है। अस्तु प्रस्तुत कोष-वर्धमान जीवन कोश-तृतीयखंड में इस अवसर्पिणी काल के चौबीसवें तीर्थकर वर्धमान के चतुर्विध संघ का निरूपण, सप्रतिक्रमण सहित पाँच महावत, उनके तीर्थ में तीर्थ कर गोत्र उपार्जन करने वाले जीव, उनके समय के कूणिक राजा का विवेचन है। सर्वज्ञ अवस्था के वर्धमान के बिहार स्थल तथा उनके निकट देवों का आगमन आदि का भी विवेचन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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