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________________ (ER) सीहा ! अट्ठ सम "हंता अस्थि" । तं णो खलु अहं सीहा । गोसालस्स मंत्तिस तवेणं तेपणं अण्णाइट्ठे समाणे अंतो छहं मासाणं जाब का करिस्सं, अहं णं अण्णाद्द सोलसवालाइ जिणे सुहरथी बिहरिस्लामि गच्छहणं तुमं सीहा ! मेंढिय गामं णयरं, रेखईए गाहाबरणीय ममं अट्ठाए दुवे कवोयसरी उवक्खडिया, तेहिं णो अट्ठो, अस्थि से अपणे पारियासिए मजारकडए कुक्कुडमंसए, तमाहराहि, एएणं अट्ठो' । - मग० श १५/१५२.१० ६६४ सिंह अणगार को सांतवना२ केवलेन जनप्रवादात् किभीतः साधो ! प्रभुत्वा तमाहूयेदमब्रवीत् । संतप्यसे हृदि ॥ ५४६ ॥ विपद्यन्ते कदाचन । वृथाऽभवन् ।। ५४७ ॥ उवाच सिंहो भगवन् ! यद्यप्येवं तथापि हि । आपदा वोऽखिलः स्वामिन्जनः संतप्यतेतराम् ॥ ५४८ ॥ माशां दुःखशान्त्यै तत् स्वामिम्नादरस्थ भेषजम् । स्वामिनं पीड़ितं द्रष्टुं न हि क्षणमपि क्षमाः ॥ ५४९ ॥ तस्योपरोधात्स्वाभ्यूचे रेवत्या श्रेष्ठभार्यया । पक्च कूष्माण्डडकटाहो यो मह्यं तं तुमा गुहीः ||५५० || बीजपूरकटाहोऽस्ति यः पक्चो तवे । तं गृहीत्वा समागच्छ करिष्ये तेन वो धृतिम् ॥ ५५९ ॥ न ह्यापदा तीर्थकृतो किं न संगमकादिभ्य उपसर्गा Jain Education International - त्रिशलाका० पर्व १० सर्ग ८ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कहा- " सिंह! ध्यानांतरिका में वर्तते हुए हुए तुम्हें इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ है यावत् अत्यंत रुदन करने लगे, हे सिंह । क्या यह बात सत्य है ? (उत्तर) "हाँ भगवान्। सत्य है ।" "हे सिंह! गोशालक के तप तेज द्वारा पराभूत होकर मैं छह मास के अंत में यावत् काल नहीं करूँगा। मैं अन्य सोलह वर्ष तक जिनमें गंध हस्ती के समान विचरूँगा। हे सिंह ! तू मैडिक ग्राम नगर में रेवती गाथा पत्नी के घर जा । उस रेवती गाथा पत्नी ने मेरे लिए दो कोहला के फलों को संस्कारित कर तैयार किया है। उनसे मुझे प्रयोजन नहीं है, उसके वहाँ माजरनामक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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