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________________ ( ३२३ ) जो लोग पूर्व में को हुए उस प्रकार के मांस का भक्षण करते है वे अज्ञानी जन पाप का सेवन करते है । अतः जो पुरुष कुशल है वे उक्त प्रकार के मांस को खाने की इच्छा भी नहीं करते है। तथा मांस भक्षण में दोष न होने का कथन भी मिथ्या है। सब प्राणियों पर दपा करने के लिए सावद्य दोष को वर्जित करने वाले तथा उस सावध की आशंका करने वाले महावीर स्वामी के शिष्य-ऋषिगण उद्दिष्ट भक्त को वर्जित करते है। प्राणियों के उपमर्द की आशंका से सावद्य अनुष्ठान को वर्जित करने वाले साधु पुरुष सब प्राणियों को दण देना त्यागकर उस प्रकार आहार को यानी दोष युक्त आहार को नहीं भोगते है। इस जेन शासन में संयमी पुरुषों का यही धर्म है। इस निन्य धर्म में स्थित पुरुष पूर्वोक्त समाधि को प्राप्त करके तथा इसमें भलीभाँति रहकर माया रहित होकर संयम का अनुष्ठान करे। इस धर्म के आचरण के प्रभाव से पदार्थों के ज्ञान को प्राप्त त्रिकाल वेदी तथा शील और गुणों से युक्त पुरुष अत्यन्त प्रशंसा का पात्र होता है। .०३ ब्राह्मणों का प्रषाद सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयर णितिए माहणाणं । ते पुण्णसंधं सुमहज्जणित्ता, भवंति देवा इइ वेयवाओ॥ -सूय० १ २ । अ६ । गा ४३ । पृ० ४६६ ब्राह्मण लोग आनक से कहते हैं, कि-जो पुरुष दो हजार ब्राह्मणों को प्रति भोजन कराता है वह भारी पुण्य पुंज को उपार्जन करके देव होता है-यह वेद का कथन है। मात्र कुमार का उत्तर सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयएणितिए कुलालयाणं । से गच्छई लोलुषसंपगाढे, 'तिव्वाभिताची णरगाभिसेवी॥ च्यापरं 'धम्म दुगंछमाणे पहावह धम्म पसंसमाणे । एग पि जे भोययई असील णिहोणिसं गच्छड अंतकाले ॥ -स्य० श्रु २ । अ६ । गा ४४, ४५ । पृ. ४६६ प्रत्युत्तर में आकजी ने ब्राह्मणों को कहा-क्षत्रियादि कुलों में भोजनार्थ घूमने वाले दो हजार स्नातक ब्राह्मणों को जो प्रतिदिन भोजन कराता है वह पुरुष मांसलोभी पक्षियों से पूर्ण नरक में जाता है और वहाँ भयंकर ताप को भोगता हुआ निवास करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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