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________________ सिद्धायतन में जहाँ देवच्छंद है और जो बाजु जिन प्रतिमायें है उस तरफ जाकर यह सुर्याभदेव और उसके सकल परिवार उसको प्रणाम किया। बाद में उसको मोरपिंछ से पूंजकर सुगन्धी जल से पखाली, सरस गोशीर्षचंदन का लेप किया। सुवासित अंगलछणा से उसको लूंछ कर और बाद में उस प्रतिमाओं को अक्षत ऐसे देवघ्य युगल पहनाया। उसके बाद उस सवस्त्र प्रतिमाओं पर फूल, माला, गंध, चूर्ण, वर्ण, वस्त्र, आमरण आदि चढाकर उसको लम्बी-लम्बी मालायें पहनायी और पाँच प्रकार के पुष्प के पगर भरे । बाद में वह जिन प्रतिमाओं के सम्मुख रूपे की अखंड चोखा के स्वस्तिक दर्पण आदि आठआठ मंगल आलेखन किया । वैडूर्य मय धूपधाणा में सुगन्ध धूप सलगायी और वह प्रत्येक प्रतिमाओं के आगे धूप किया। और बाद में गंभीर अर्थ वाले मोटे एक सौ आठ छन्द बोल कर उनकी स्तुति की। उसके बाद वह सर्याभदेव सात-आठ पैर वापस फिरा। बाद में बैठकर, बायाँ पैर ऊँचा रखकर, दायाँ पैर जमीन पर रखकर, मस्तक तीन बार नीचा नमा कर हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोला अरिहत-भगवतों को नमस्कार यावत् अचलसिद्धि को प्राप्त हुए है उनको नमस्कार। बाद में तो यह सिद्धायतन का मध्य भाग, उसके चार बाजुओं में द्वार प्रदेश, मुखमंडप, प्रेक्षागृह मंडप, वज्रमय अखाडा, सर्व चैत्यस्तंभ, मणिपीठिकाओं के ऊपर की जिनप्रतिमायें, सर्व चैत्य वृक्ष, महेन्द्रध्वजाय नन्दापुष्करियाँ, माणवक चैत्यस्तम्मों में सचवाई रहे हुए, जिन सक्थियाँ, देव शय्यायें, नाना महेन्द्रध्वना, सुधर्मासभा, उपपातसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा और ये सर्व समाओं, चार बाजु के प्रदेश, ये सर्व ने तथा सर्व स्थल में यी हुई पुतलियाँ, शाल भंजिकाय, द्वारचेटीयें और अन्य सर्व भव्य उपकरण आदि को वह सुर्याभदेव मोरपीछी से पूछा, दिव्य जल की धारा से पौंछा। उसके ऊपर गोशीर्ष चन्दन का लेप किया। वे वतीस थापा मारे और उसके सन्मुख फूल के पगर भरे। धूप दिपा और वह शोभावर्षक सर्व सामग्री पर फूल चढाये। उसी प्रकार मालायें, घरेणा और वस्त्र आदि पहनाये और स्वयं की ऋद्धि को सूचित करते हुए वे प्रत्येक पदार्थ की ओर वह सुर्याभदेव स्वयं का सद्भाव बताया। इस प्रकार करता-करता वह छेड़े अन्त में व्यवसाय सभा में आ पहुँचा । वहाँ उसने यहाँ के पुस्तक रन को मोर पोंछ से पूजन किया। दिव्य जल की धारा से पोंखा और उत्तम. गन्ध, उसी प्रकार मालादि से पूर्ववत उसकी अर्चना की। तथा वहाँ की पुतली आदि की ओर भी उसने उसी प्रकार स्वयं का सदभाव सूचित किया। ___ यह सब करके जब वह बलिपीठ के पास आकर बलिका विसर्जन किया, तब उसने स्वयं अभियोगिक देवों को बुलाकर नीचे का हुकम कह कर सौंपा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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